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________________ कारी चरण की स्मृति में एक छोटे स्तम्भ पर एक शिलालेख भी अंकित किया गया है। यह स्थल भी आजकल पाली जिले का ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल बना हुआ है। स्थानकवासी आचार्य श्री रघुनाथ से सैद्धान्तिक मतभेद से आचार्य भिक्षु सहित तेरह साधु अलग हो गये थे। वि० सं० 1817 में आषाढ पूर्णिमा को आचार्य भिक्षु ने मेवाड़ के केलवा गांव में स्वयं ही दीक्षा ग्रहण की। जनता ने इन तेरह साधुओं को तेरापंथ से सम्बोधित करना आरम्भ किया, जबकि स्वयं आचार्य भिक्षु इसे "हे ! प्रभो। यह तेरापंथ" से सम्बोधित किया करते थे। तभी से श्वेताम्बर जैन संघ के मूर्तिपूजक, स्थानकवासी पंथ के पश्चात तेरापंथ का शुभारम्भ हुआ। आचाय श्री भिक्ष का स्वर्गवास वि० सं० 1860 भाद्रवा शुक्ला तेरस को पाली जिले के सिरियारी गाँव में हुआ । जहाँ आपका दाह-संस्कार किया उस स्थल पर एक स्मारक स्वरूप संगमरमर के पाषाणों का विशाल समचौरस चबूतरा बना हुआ है। जिस पर-हे। प्रभो। यह तेरापंथ, स्वस्तिक एवं आचार्य भिक्षु शब्द लिखे हुए हैं। चबूतरे की नीचे की खड़ी दीवारों पर आचार्य भिक्षु की जन्म कुण्डली, जन्म परिचय, निराकांक्षी भिक्ष, भिक्षु वाणी, संघ को अंतिम सन्देश, भिक्षु की रचनाऐं, विहार क्षेत्र, चार्तुमास आदि की विस्तृत जानकारी भी अंकित की हुई है । इसी स्मारक पर दया, धर्म एवं दान सम्बन्धी उपदेश भी विद्यमान है। ___ यह स्मारक सिरियारी गांव के बाहर बरिसाती बहने वाली नदी के किनारे, पहाड़ों की ओट में विशाल चारदीवारी के बीच श्री श्वेताम्बर तेरापंथ स्मारक समिति द्वारा संचालित रसायन शाला भवन के सामने बना हुआ है । इस ऐतिहासिक स्मारक का प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख है। श्री श्वेताम्बर जैन तेरापंथ के जन्मदाता आचार्य श्री भिक्षु का जन्म, दीक्षा एवं स्वर्गवास राजस्थान के पाली जिले में क्रमशः कंटालिया, बगड़ी एवं सिरियारी गांव में होने के कारण, ये स्थल आजकल ऐतिहासिक स्मारक बने हुए हैं, जिसकी ऐतिहासिकता के कारण प्रतिवर्ष हजारों यात्री यात्रा भी करते हैं । स्वयं आचार्य श्री भिक्ष ने अपने जन्म स्थल कंटालिया में वि० सं० 1824 एवं 28 में , क्रांतिकारी कदम उठाये गए स्थल बगड़ी (सुधरी) में वि० सं० 1827, 30 एवं 36 में और स्वर्गारोहण-स्थल सिरियारी में वि० सं० 1819, 22 29, 39, 42, 51 एवं 1860 में चार्तुमास किये । सिरियारी में तेरापंथ के जन्मदाता आचार्य भिक्ष के वि० सं० 1860 भाद्र वा शुक्ला 13 को स्वर्गवास होने पर इनके शिष्य श्री भारीमाल तेरापंथ का दूसरे आचार्य हुए। जहाँ इन्होंने वि० सं० 1872 का चार्तुमास किया। इन दो श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्यों के अतिरिक्त तेरापंथ के किसी भी अन्य आचार्यों ने इन तीनों स्थानों पर अपना चार्तुमास नहीं किया। तेरापंथ द्वारा मनाये जाने वाला मर्यादा महोत्सव भी पाली जिले के इन ऐतिहासिक स्थलों में वि० सं० 1922 में इस पंथ के चौथे आचार्य श्री जीतमल जी द्वारा आचार्य भिक्ष २२२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524516
Book TitleTulsi Prajna 1978 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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