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तेरापंथ के तीन ऐतिहासिक स्थल
श्री भूरचन्द जैन
राजस्थान प्रदेश का पाली जिला ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों के साथ धार्मिक दृष्टिकोण से भी सर्व विख्यात है, जिसकी गोद में सभी धर्म एवं सम्प्रदायों का बहुमुखी विकास हुआ है । राणकपुर, परशुराम महादेव आदि अनेकों स्थल आज भी भारत के मानचित्र पर ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राचीन शिल्पकला के बेजोड़ नमूनों के लिये विख्यात है । यह तपोभूमि अनेकों ऋषि महर्षियों, संत महात्माओं, जैन साधुसन्तों एवं आचार्यों की जन्म एवं कर्म-स्थली का भी सौभाग्य प्राप्त किये हुए है । जैनधर्म के अनेकों इतिहास प्रसिद्ध श्वेताम्बर साधु एवं आचार्य महात्माओं का पाली जिले में जन्म हुआ है । उनकी त्याग एवं तपस्या, ज्ञानगरिमा, सत्य एवं अहिंसा की वाणी ने भारतीय इतिहास के अमर पृष्ठों पर अपनी अमूल्य छाप अंकित कर रखी है ।
तेरापंथ के जन्मदाता तथा तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु - भीखण जी - का जन्म पाली जिले के कंटालिया ग्राम में संखलेचा गोत्र के शाह बल्लू की धर्म पत्नी श्रीमती दीपांबाई की कोख से वि० सं० 1783 आषाढ़ शुक्ला 13 को हुआ था । जन्म से पूर्व इनकी माता ने स्वप्न में सिंह देखा था । आज भी कंटालिया गाँव का वह साधारण मकान जहाँ आचार्य भिक्षु का जन्म हुआ था, ऐतिहासिक निधि समझा जाता है, जिसका साधारण प्रवेश द्वार है, और आंतरिक भाग की एक प्राचीर पर माता द्वारा स्वप्न में देखे सिंह की आकृति star किया हुआ है । इस प्राचीन इमारत की जगह नवीन निर्माण कार्य करवाया जा रहा है। इस जन्म स्थल के पास ही एक आधुनिक धर्मशाला 'श्री भिक्षु कल्याण केन्द्र' के नाम से बनी हुई है ।
आचार्य भिक्षु ने वि० सं० 1808 मार्गशीर्ष कृष्णा 12 को पाली जिले के ऐतिहासिक स्थल बगड़ी में स्थानकवासी आचार्य रघुनाथ से द्रव्य-दीक्षा ली और इन्हीं से सैद्धान्तिक मतभेद होने हर वि० सं० 1817 चैत्र शुक्ला 9 को आप इनसे पृथक हो गये थे । बगड़ी बस्ती के बाहर ठाकुर जैतसिंह की छतरी पर जहाँ आचार्य श्री भिक्षु सैद्धान्तिक मतभेदों के कारण स्थानकवासी जैन संघ से पृथक हुए थे, उस स्थल पर स्मृति स्वरूप एक शिलालेख विद्यमान है, जिसके पास ही वि० सं 2017 चैत्र शुक्ला नवमी, 5 अप्रैल 1960 को अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के पदार्पण के अवसर पर दो शताब्दी पूर्व उठाये क्राँति
खण्ड ४, अंक ३-४
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