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________________ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी शीघ्र अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। उपयोगिता की दृष्टि से इसके विशेषांकों का सर्वत्र समादर हुआ है। इसका प्रस्तुत विशेषांक पं० नाथूलालजी शास्त्री के सम्मान में प्रकाशित हुआ है। इन्दौर निवासी श्री शास्त्रीजी जैन समाज के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। अभी कुछ महीनों पहले इन्हें अखिल भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष पद पर मनोनीत किया गया था। "सन्मति-वाणी" (मासिक) के कुशल सम्पादक, सफल अध्यापक, प्रतिष्ठाचार्य एवं संहितासूरि आदि रूप में प्रसिद्ध पण्डितजी जिनवाणी के मौन साधक हैं । शिक्षा, लेखन एवं पत्रकारिता के माध्यम से चरित्न-निर्माण की दिशा में इन्होंने बहुमूल्य योगदान दिया है। ऐसे विद्वान् के सम्मान में तीर्थंकर ने अपने प्रस्तुत विशेषांक के द्वारा सम्पूर्ण विद्वत्-जगत् का सम्मान किया है। इस विशेषांक के प्रारम्भ में पं० नाथूलालजी शास्त्री की आज तक की जीवनयात्रा एवं सेवाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। स्वयं पण्डितजी ने अपनी कलम से अपने विषय में सच्चाई से जो लिखा है वह आत्मकथा विषयक साहित्य के लिए महत्वपूर्ण सामग्री है । पण्डितजी को समीप से जानने वाले गणमान्य व्यक्तियों द्वारा उनके सम्बन्ध में व्यक्त किये गये विचार पण्डितजी की निष्ठा एवं उज्ज्वल चरित्र के प्रतीक हैं। इस विशेषांक में “पण्डित" शब्द का विविध आयामों से विश्लेषण किया गया है तथा इसमें 'जैन पण्डित परम्परा,' 'इसका योगदान एवं भविष्य,' विषयक विशिष्ट विद्वानों के लेख हैं। इनमें से श्री वीरेन्द्रकुमार जैन, ५० कैलाशचन्द शास्त्री, श्री नेमीचन्द पटोरिया, प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन, कन्हैयालाल सरावगी, डॉ. जयकुमार जलज, पं० पन्नालालजी, डॉ० कासलीवाल, डॉ० बिल्लोरे, डॉ० प्रेम सुमन जैन, डॉ० भास्कर एवं पं० परमानन्दजी आदि के लेख बहुत महत्वपूर्ण हैं । "पण्डितः भावी भूमिकाः" के अन्तर्गत विभिन्न विद्वानों के प्रेरक विचार भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। प्रमुख दिवंगत जैन पण्डित-शीर्षक के अन्तर्गत पं० गोपालदास जी बरैया, पं० सुखलाल संघवी, ब्र०५० चन्दाबाई, डॉ० हीरालाल जैन, डॉ० ए० एन० उपाध्ये, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य का जीवन चरित्र एवं साहित्यिक सेवाओं का मूल्यांकन किया गया है। सरस्वती के आराधकों के सम्मान में प्रकाशित इस विशेषांक का अनुकरण अन्यान्य पत्र-पत्रिकायें करेंगी जिससे वर्तमान के सभी विशिष्ट विद्वानों की सेवाओं का उचित मूल्यांकन एवं आदर होता रहे । प्रस्तुत विशेषांक के विद्वान सम्पादक एवं प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने इस दिशा में एक नई परम्परा दी। -डॉ० फूलचन्द जैन प्रेमी १७८ तलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
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