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पृष्ठ 367 पर उक्तिव्यक्तिप्रकाश का परिचय दिया है, उसका कर्ता दामोदर जैन नहीं है।
पृष्ठ 369 पर साठ हजार की जगह आठ हजार सम्भवतः गलती से छप गया है ।
पृष्ठ 371 पर जैन लक्षणावली तीन भागों में हो चुकी है, लिखा है, पर तीसरा भाग तो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है ।
पृष्ठ 359 पर सुन्दरगणि नाम छपा है । वहाँ 'साधु सुन्दर होना चाहिये ।
पृष्ठ 361 पर हर्ष कवि एवं विश्वशम्भु को केवल इसलिए जैन मान लिया है कि उनकी रचनाओं की प्रति दिगम्बर शास्त्र भण्डारों में मिली हैं पर मेरे ख्याल से दोनों ही जैन नहीं हैं।
पृष्ठ 362 पर हर्षकीर्ति की लघुनाममाला और हर्षकीर्ति की नाममाला को अलगअलग मान लिया है। पर वास्तव में हर्षकीर्ति सूरि की एक ही नाममाला है। यह प्रकाशित भी हो चुकी है। जिसका नाम सारदीय-नाममाला' और 'मनोरमानाममाला' है । पं० हीरालाल हंसराज ने जामनगर से सन् 1972 में इसे प्रकाशित किया है, उसमें तो इसका नाम 'सारदीया नाममाला' है और हमारे संग्रह में इसका नाम 'मनोरमा नाममाला' लिखा है । पृष्ठ 362 पर एकादशी नाममालाओं का उल्लेख है पर ऐसी नाममालाएं तो कई मिलती हैं, जिनका संग्रह मुनि रमणीकविजयजी ने संपादित कर राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा वि० सं० 2021 में प्रकाशित करवा दिया है । इस ग्रन्थ का नाम--'एकाक्षर नामकोश संग्रह है।
डा० शास्त्री ने अपनी ओर से काफी समय एवं श्रम लगाकर अपना निबन्ध तैयार किया है पर उसमें अज्ञात लेखकों व रचनाओं की नयी जानकारी कुछ भी नही आ सकी है। अतः उनकी अज्ञात होने की जानकारी मैं अपने अन्य लेखों में प्रकाशित करूंगा।
खण्ड ४, अंक २
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