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________________ स्थूलभद्रफागु-जिनपद्मसूरि (1334) बारहमासा-नेमिनाथचतुष्पदिका--विनयचंद्र (1275) छप्पय --उवएसमालक इरणयछप्पय-विनयचंद्र (1275) खरतरगुरुगुणवर्णन-छप्पय (15वीं शती) विवाहल-जिनेश्वरसूरि विवाहलु-सोममूर्ति (1275 पश्चात्) चर्चरी-सोलणचर्चरी (गिरनारयात्रा) (14वीं शती) सम्यक्त्वचउप्पई - जगड़ (1275) मातृकाचउप्पई - गोराबादलचउप्पई-हेमरत्न (1580) कक्क-शालिभद्र कक्क-पद्म (13वीं शती) धवलगीत--जिनपतिसूरिधवल (मंगल) गीत–साहरयण (13वीं शती) प्रबन्ध-विमलप्रबन्ध-लावण्यसमय (1512) - हम्मीरप्रबंध -- अमृतकलश (1519) लोककथा और रूपक रूपक-भव्यचरित्र=जिनप्रभाचार्य (13वीं शती) लोक कथा-हंसराज-वच्छराजचोपाई - विजयभद्र (1355) ढोलामारु-कुशललाभ (1560) सिंहासनबत्रीसी-हीरकलश (1580) गद्यमय कृतियाँ बालाव बोध-(कथासंक्षेप, दार्शनिक चर्चा, वादविवाद अथवा प्रश्नोत्तरी के रूप में मिलते हैं।) आराधना पर बालावबोध (1274) अतिचार पर बालावबोध (1284) षडावश्यक बालावबोध-तरुणप्रभ (1355) वर्णक - (अनेक वर्णनों से भरपूर) (1422) पृथ्वीचन्द्रचरित-माणिक्यसुन्दर (1422) व्याकरण-बालशिक्षा-संग्रामसिंह (1280) मुग्धावबोध औवितक-कुलमंडन (1394) पन्द्रहवीं शती के लावण्यसमय और समय सुन्दर की अनेक प्रकार की कृतियां जैसे-स्तवन, सज्झाय, छंद, विनती, हमचडी, संवाद, गीत इत्यादि । यह सभी साहित्य जैनों का है और गुजराती तथा राजस्थानी के विद्वान् इस साहित्य को अपनी-अपनी भाषा का आदिकालीन साहित्य मानते हैं। यहाँ तक कि जो गद्य कृतियाँ ऊपर बतलायी गई हैं उन्हें गुजराती और राजस्थानी की आदि कृतियाँ मानी जाती हैं। ये ही साहित्य विधायें गुजराती और राजस्थानी में काफी समय तक चली आयी। 13वीं से 15वीं शती तक राजस्थानी और गुजराती भाषा एक ही थी, अतः दोनों भाषा वाले इसमें तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
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