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(2) चरित संग्रह (तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारु) (3) कथाकोष (श्रीचन्द्र का कथाकोष इत्यादि) (4) उपहासात्मक कथा (धम्मपरिक्खा) (5) रूपकात्मक काव्य (मदनपराजयचरिउ)
(6) अध्यात्म, ध्यान, योग संबंधी (बौद्धों का सिद्ध दोहा साहित्य, परमात्मप्रकाश, योगसार, पाहुडदोहा, इत्यादि)
(7) शृंगार और वीर रस संबंधी (हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में उद्धरण) (8) संधिकाव्य (भावना संधि प्रकरण) (9) श्रावक धर्म (सावयदोहा) (10) स्तोत्र (जयतिहुयण स्तोत्र) (11) छन्द (स्वयंभू और हेमचन्द्र की कृतियाँ)
रास, फागू, बारहमासा, छप्पय, विवाहलु, इत्यादि नवीन प्रकार की अपभ्रंश रचनाएं 12वीं शती से मिलती हैं । ये उत्तरकालीन अपभ्रंश कृतियां मानी जाती हैं। आधुनिक भाषा वाले इन्हें अपनी-अपनी भाषा का आदि साहित्य कहते हैं। वास्तव में यह संधिकालीन साहित्य है और इसकी परंपरा आधुनिक भाषाओं के साहित्य में बनी रही अतः इनकी चर्चा आधुनिक भाषाओं के प्राचीन साहित्य के अन्तर्गत की जा सकती है । 2. भारतीय साहित्य को उपलब्ध प्राकृत साहित्य की महत्वपूर्ण देन
यहाँ पर प्राकृत साहित्य के अन्तर्गत पालि और अपभ्रश साहित्य का भी समावेश किया गया है। भारतीय आर्य भाषाओं के उपलब्ध साहित्य में श्रमणों के प्राकृत साहित्य का कुछ महत्त्वपूर्ण और विशेष प्रदान इस प्रकार है :
शिलालेख–उपलब्ध शिलालेखों में सम्राट अशोक और खाखेल के पालि और प्राकृत के शिलालेख ही भारत के सबसे प्राचीन शिलालेख हैं। अन्य सभी उत्कीर्ण लेख इनके बाद के हैं।
उपदेशात्मक सूक्ति-संग्रह-धम्मपद सदाचार सम्बंधी सूक्तियों का श्रेष्ठ और प्राचीनतम काव्यात्मक संग्रह ग्रंथ माना जाता है । उपदेशात्मक कथा-संग्रह :
1. नायाधम्मकहाओ गद्य कथाओं का एक प्राचीन संग्रहात्मक ग्रंथ है जिसमें मुनियों को आचरण और संयम में सुदृढ़ करने के लिए दृष्टांत कथाएं दी गयी हैं।
2. जातकट्ठकथा का पद्य भाग प्राचीन माना जाता है । यह भी कथाओं का संग्रह ग्रंथ है। इसमें भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं दी गयी हैं जिसका हेतु पारमिताओं का परिशीलन करना है । लोक-कथाओं की दृष्टि से यह बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।।
3. विवागसुय और अपदान जैसे ग्रंथों में पूर्व भव में किये गये कार्यों का इस जन्म में अच्छा या बुरा फल देने वाली कथाओं का प्राचीनतम संग्रह है। जातकट्ठकथा में भगवान् बुद्ध के ही पूर्व भवों की कथाएँ आती हैं परन्तु इन ग्रन्थों में अनेक अन्य पात्रों की कथाएं हैं।
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