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अर्धमागधी साहित्य ( ई० स० पूर्व ० 500 से 600 ई० स० तक )
अर्धमागधी साहित्य निम्नलिखित विषयों पर मिलता है :
(1) सिद्धान्त स्व और पर (सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, भगवती, स्थानांग, राजप्रश्नीय, औपपातिक, उवासगदसाओ इत्यादि)
(2) आचार ( आचारांग, उवासगदसाओ)
(3) आराधना, स्तव, प्रत्याख्यान, प्रायश्चित, व्यवहार, क्रियानुष्ठान, भोजन-वस्त्रनिवास, समाधि संबंधी (दशप्रकीर्णक, छ: छेदसूत्र, आवश्यक, पिंडनियुक्ति ओघनियुक्ति आदि)
(4) कथात्मक ( धार्मिक, औपदेशिक, अर्ध- ऐतिहासिक, पौराणिक ) ( नायाधम्म, उत्तराध्ययन, अनुत्तरोपपातिक, अन्तगड, विवागस्य, निरयावलिया इत्यादि) ( 5 ) भूगोल - खगोल ( जम्बुद्दीवपण्णत्ति जीवाजीवाभिगम )
(6) ज्योतिष ( गणिविज्जा, जोइस करंड )
(7) सामुद्रिक ( अंगविज्जा )
( 8 ) चरित ( कल्पसूत्र )
( 9 ) आचार्य - परंपरा ( नंदी सूत्र )
( 10 ) ज्ञानचर्चा (नंदी और अनुयोगद्वार )
( 11 ) उपदेशात्मक सूक्ति (इसिभासिया इं )
इस आगम साहित्य पर प्राकृत में नियुक्ति, भाष्य और चूर्णी के रूप में टीका साहित्य मिलता है । चूर्णियाँ गद्य लिखी गयी हैं और उनमें रोचक कथाएं भी मिलती हैं ।
शौरसेनी साहित्य ( ई० स० 100 से 1500 तक)
शौरसेनी साहित्य के विषय निम्न प्रकार से हैं :
(1) सिद्धान्त और कर्म ( षट्खंडागम, घवला, महाघवला, कषायप्राभृत, प्रवचनसार, समयसार, पंचास्तिकाय, गोम्मटसार, द्रव्यसंग्रह इत्यादि)
(2) आचार, आराधना, प्रायश्चित (मूलाचार, नियमसार भगवती, आराधना, वसुनंदि, श्रावकाचार, छेदपिण्ड इत्यादि)
खण्ड ४,
( 3 ) नय ( नयचक्र - देवसेनसूरि, बृहत्नयचक्र - माइल्लधवल )
( 4 ) भूगोल - खगोल - गणित ( तिलोयपण्णत्ति, जम्बुद्दीवपण्णति संग हो )
( 5 ) ध्यान (मोक्षपाहुड, बारसअणुपेक्खा )
महाराष्ट्री और प्राकृत साहित्य ( ई० स० 100 से 1500 तक ) महाराष्ट्री प्राकृत साहित्य निम्न प्रकार से उपलब्ध है। ( 1 ) शिलालेख (खाखेल का शिलालेख )
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( 2 ) पुराण - चरित ( पउमचरिय, जंबूचरिय और अनेक तीर्थंकर चरित) ( 3 ) चरितसंग्रह ( चउप्पन्न महापुरिसचरिय, कहावलि (गद्य) इत्यादि)
अंक २
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