SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा में सोच कर और शिष्ट प्राकृत भाषाओं में रची गयी हैं अतः उनमें मूल लोक-भाषाओं के वे स्वाभाविक तत्त्व नहीं मिलते जो श्रमण साहित्य में उपलब्ध हैं। गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी आदि आधुनिक भाषानों का प्रारंभिक साहित्य भी श्रमणों की ही देन है। प्राकृत भाषाओं का साहित्य मागधी-पालि, अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, अपभ्रंश और अवहट्ट भाषाओं में मिलता है। इन भाषाओं में शिष्ट साहित्य के रूप में कथा और काव्य ही नहीं परंतु दर्शन और तत्त्वज्ञान जैसे गंभीर विषय पर भी साहित्य उपलब्ध है । अन्य विविध प्रकार के साहित्य से भी इन भाषाओं की सामर्थ्य शक्ति सिद्ध होती है। लोक प्रचलित अनेक राग और छंद तथा अनेक विधाओं का उपयोग और संरक्षण भी इसी परंपरा में हुआ है । भारतीय लोक संस्कृति का सर्वाङ्गीण दर्शन भी इसी साहित्य से होता है। . आर्य भाषाओं तक ही श्रमणों का क्षत्र सीमित नहीं रहा परंतु द्रविड़ी भाषाओं को भी उनका योगदान रहा है । तमिल और कन्नड़ भाषाओं के प्राचीनतम साहित्य में भी श्रमणों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। 1. प्राकृत भाषाओं में उपलब्ध श्रमणों का विविध प्रकार का साहित्य और उसका महत्व नीचे किया गया विषयवार विभाजन सामान्य तौर पर है। इसका अर्थ यह नहीं कि अमुक ग्रन्थ में अन्य विषय मिलते ही नहीं अथवा अमुक विषय अन्य ग्रन्थों में मिलता ही नहीं। पालि (मागधी) (ई० स० पूर्व 600 से 60 ई० स० तक) __अर्धमागधी आगम की कुछ कृतियों के समान पालि त्रिपिटक की भी कुछ कृतियां संस्कृतेतर साहित्य में प्राचीनतम समझी जाती हैं। पालि त्रिपिटक के मुख्य तीन विभाग हैंसुत्त, विनय और अभिधम्म । सुत्त पिटक में सरल पद्धति से भगवान् बुद्ध के सिद्धान्त समझाये गये हैं। विनय पिटक में आचार और संघ संबंधी नियम हैं तथा प्रायश्चित और शिक्षा (सजा) सम्बंधी विधान हैं । अभिधम्मपिटक में सूक्ष्म दृष्टि से तत्त्वज्ञान समझाया गया है। इनमें से कुछ ग्रन्थों की विशेषता इस प्रकार है : .. थेर-थेरी गाथा में हमें गीतिकाव्य के दर्शन होते हैं, अंगुत्तर-निकाय में विषयों का संख्यात्मक वर्गीकरण मिलता है, धम्मपद उपदेशात्मक सूक्तियों का एक अद्भुत ग्रन्थ है, जातक-कथा-ग्रंथ लोक कथाओं का अद्वितीय खजाना है जिसमें रोमांचकारी, नैतिक, विनोदात्मक, धार्मिक और पशु कथाएं मिलती हैं, बुद्धवंश में 24 बुद्धों की जीवनी मिलती है और चरियापिटक में बुद्ध के पूर्व भव की कथाएं हैं । अभिधम्म में चित्त का विश्लेषण उत्तम ढंग से हुआ है । अशोक के द्वारा उत्कीर्ण किये गये लेख भी प्राचीनतम पालि लेख हैं। त्रिपिटक के बाद मिलिन्दपञ्हो का दार्शनिक और संवादात्मक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है। त्रिपिटक ग्रंथों के टीका साहित्य में पालि अट्ठकथाएं हैं जिनकी रचना मुख्यतः बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल द्वारा की गयी हैं। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy