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(8) लोक परम्पराओं में भी संस्कृति के मूल रूप के दर्शन सहज ही होते हैं । इस बात का प्रबल प्रमाण है-इस मूर्ति का 'बड़े बाबा' के नाम से सम्बोधित होना । तीर्थंकरों की परम्परा में जो बड़ा है, वृद्ध है' उसे ही तो "बड़े बाबा" का सम्बोधन प्रदान किया जा सकता है, अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के लिए 'बड़े बाबा' सम्बोधन कैसा?
उक्त प्रमाणों के प्रकाश में यह तथ्य सहज ही स्वीकार किया जाना चाहिए कि कुण्डलपुर के 'बड़े बाबा' की मूर्ति महावीर स्वामी की नहीं है, प्रत्युत प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की है।
यद्यपि भारत में यत्र तत्र अनेक विशाल पद्मासन मूर्तियां प्राप्त होती हैं, परन्तु कला का जो शाश्वत और सार्वकालिक स्मरणीय प्रभाव तथा वीतरागता की जो अनुपम अनुभूति 'बड़े बाबा' की इस मूर्ति से प्राप्त होती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। ऐसी दिव्य मूर्ति को शतशः नमन । इति ।
श्रमणधर्म-पद दसविधे समणधम्मे पण्णते, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे, संममे, तवे, चियाए, बभचे रवासे ।।
__ श्रमणधर्म के दस प्रकार हैं :-(1) क्षान्ति, (2) मुक्ति (अनासक्ति), (3) जार्जव, (4) मार्दव, (5) लागव, (6) सत्य, (7) संयम, (8) तप, (9) त्याग (अपने सांभोगिक साधुओं को भोजन आदि का दान), (10) ब्रह्मचर्य वास ।
-ठाणं, 10/16
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तुलसी प्रज्ञा
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