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अधिक जानकारी रही होगी। अब से कुछ दशाब्दियों पहिले भी ऐसी ही स्थिति रही है, क्योंकि साधारण मनुष्य श्रद्धालु होता है। वह इतिहास, धर्मशास्त्र, साहित्य और प्रतिमा. विज्ञान की गहराइयों में नहीं पैठना चाहता। अतः उसने इस मूर्ति को सहज भाव से 'बड़े बाबा' कहते हुए भी महावीर के नाम से जाना । अस्तु ।
___ जनसामान्य की धारणा के विपरीत अनेक ऐसे ठोस प्रमाण हैं जिनके आधार पर बड़े बाबा को श्री महावीर स्वामी की मूर्ति मानने में शास्त्रीय और प्रतिमाविज्ञान संबंधी अनेक बाधायें हैं। यह मूर्ति, वास्तव में, प्रथम तीर्थंकर युगादिदेव भगवान ऋषभदेव की है। इस संबंध में मेरे निष्कर्ष निम्न प्रकार है :
(1) बड़े बाबा की इस मूर्ति के कन्धों पर जटाओं की दो-दो लटें लटक रही हैं । साधारणतः तीर्थंकर मूर्तियों की केस राशि धुंधराली और छोटी होती है। उनके जटा और जटाजूट नहीं होते । किन्तु भगवान् ऋषभनाथ की कुछ मूर्तियों में प्रायः इस प्रकार के जटाजट अथवा जटायें दिखाई देती हैं। भगवान् ऋषभदेव के दीर्घकालीन, दुर्द्ध र, तपश्चरण के कारण उनकी मूर्ति में जटायें बनाने की परम्परा मध्यकाल तक प्रचलित रही है । तीर्थंकर ऋषभनाथ की मूर्तियों का जटायुक्त रूप शास्त्रसम्मत भी है। जैसा कि आचार्य जिनसेन ने भी कहा है :
(अ) चिरं तपस्यतो यस्य जटा मूनि बमुस्तराम् । ध्यनाग्निदग्ध कर्मेन्धनिर्मद धूमशिखा इव ॥
-आदिपुराण, पर्व 1, पद्य 9 (ब) प्रलम्बजटाभार भ्राजिष्णुजिष्णुराबभौ । रूढ प्रारोहशाखाग्रो यथा न्यग्रोधपादपः ।।
-हरिवंश पुराण, 9, 204 कुण्डलपुर के बड़े बाबा के कंधों पर जटायें भी लहरा रही हैं। अतः निर्विवाद रूप से यह मूर्ति भगवान ऋषभनाथ की ही है, महावीर स्वामी की नहीं।
(2) श्री महावीर-मूर्ति के परिकर में उनके यक्ष मातंग और यक्षी सिद्धायिका का अंकन आवश्यक है, जबकि इस मूर्ति में ऐसा कोई अंकन नहीं है।
(3) बड़े बाबा की मूर्ति के पादपीठ के नीचे सिंहासन में आदिनाथ के यक्ष गोमुख और यक्षी चक्रेश्वरी का सायुध सुन्दर अंकन है। यक्ष अपने दो हाथों में से एक में परश और दूसरे में बिजौरा फल धारण किये हैं। उसका मुख गाय जैसा है। जबकि चक्रेश्वरी यक्षी चतुर्भुजी है । उसके ऊपर के दो हाथों में चक्र हैं, नीचे का दायां हाथ वरद मुद्रा में है तथा बायें हाथ में शंख है।
___ उक्त यक्ष और यक्षी के शास्त्रीय मूर्त्यङकन से निर्विवाद रूप से यह तथ्य प्रमाणित है कि बड़े बाबा की मूर्ति तीर्थंकर ऋषभनाथ की ही है।
खण्ड ४, अंक २
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