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ऊंची तथा 11 फुट 4 इंच चौड़ी विशाल पद्मासन मूर्ति इस क्षेत्र की सर्वाधिक प्रसिद्ध और दशकों के मन को सहज ही मोह लेने वाली निर्मिति है । इस मूर्ति का निर्माण देशी भूरे रंग के पाषाण से हुआ है । इस मूर्ति के मुख पर सौम्यता, भव्यता और दिव्य स्मिति है। यदि हम इस मूर्ति को (देखो चित्र संख्या दो) ध्यानपूर्वक कुछ समय तक देखते रहें तो इसके मुख
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(चित्र 2) पर अद्भुत लावण्य, अलौकिक तेजस्विता और दिव्य आकर्षण के दर्शन प्राप्त करेंगे। मूर्ति के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न सुशोभित है। कंधों पर जटाओं की दो-दो लटें दोनों ओर लटक रही हैं । मूर्ति के सिंहासन के नीचे दो सिंह उत्कीर्ण हैं, ये सिंह आसन से संबंधित हैं, तीर्थंकर के लांछन नहीं है। मूर्ति के पादपीठ के नीचे गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी अंकित हैं।
इस मूर्ति को आम जनता में भगवान महावीर' की मूर्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह धारणा शताब्दियों से चली आ रही है, किन्तु नवीन शोध-खोज के आधार पर वास्तव में यह मूर्ति जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की प्रमाणित होती है।
___मैंने अपने विगत कुण्डलपुर प्रवास में शोध-खोज की दृष्टि से 'बड़े बाबा' की इस सातिशय मनोज्ञ मूर्ति के सूक्ष्म रीति से पुनः पुनः दर्शन किये और उन सभी आधारों पर खण्ड ४, अंक २
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