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शक्ति या ऊर्जा को पकड़ने का प्रयास करने को कहता। बहुत सारे बच्चे लहरवत् अथवा गुदगुदाते स्पन्दनों का वर्णन उसी समय करते। वोगल ने यह विशेष रूप से जाना कि जिन बच्चों को स्पन्दनों का स्पष्ट अनुभव होता था वे पूर्णतया उस कार्य में लीन हो जाते थे। जैसे ही वे गुद्गुदाते हुए स्पन्दनों का अनुभव करते, वह उन्हें कहता कि अब पूर्णतया शिथिल (कायोत्सर्ग की तरह) हो जाओ और ऊर्जा के आदान-प्रदान करने का अनुभव करो। जब उसकी धड़कन को पकड़ सको तब अति कोमलता से पत्तों के ऊपर और नीचे हाथों को फिराओ या घुमाओ। उसके निर्देशानुसार प्रयोग करने वाले छोटे बच्चे आसानी से जान लेते कि जैसे ही वे अपना हाथ नीचे कर लेते, पत्ते भी निढाल हो जाते । जब बार-बार यही किया जाता तो पत्ते भी हिलोरें लेने लगते । दोनों हाथों से प्रयोग करने पर वे उन्हें वास्तविक रूप से झुलाते । जब उन्हें पूर्ण विश्वास जम जाता तो वोगल उन्हें पौधों से दूर, और दर जाने को कहता । ऊर्जा जो कि दृश्यमान नहीं है, के प्रति विस्तृत सजगता को विकसित करने का यह एक बुनियादी प्रशिक्षण है-ऐसा वोगल का कहना है। यदि उर्जा के साथ सजगता स्थिर हो गई तो उसके साथ वे प्रयोग भी कर सकते हैं। वोगल के मतानुसार वयस्क, इस प्रयोग में बच्चों के बनिस्पत कम सफल रहते हैं और इससे वह इस निष्कर्ष पर पहंचता है कि बहुत सारे वैज्ञानिक लोग प्रयोगशालाओं में बक्सटर एवं स्वयं उसके प्रयोगों की पुनरावृत्ति नहीं कर पाएंगे । अगर वे प्रयोग को यन्त्रवत् करें और पौधे के साथ मित्रवत् पारस्परिक आदान प्रदानात्मक जीवन्त सम्पर्क नहीं कर पायें तो वे निष्फल रहेंगे। सचमुच केलीफोर्निया साइकिकल सोसायटी में कार्यरत एक डॉक्टर ने वोगल से कहा कि उसे एक भी निष्कर्ष नहीं मिला यद्यपि उसने महीनों तक प्रयास किये थे। डेनवर के एक विख्यात मनोचिकित्सक का भी यही अनुभव रहा । वोगल का कहना है कि विश्व की हजारों प्रयोगशालाओं में काम करने वाले लोग अपने को बहुत ही निराश और दुःखित अनुभव करेंगे क्योंकि जब तक ये लोग पौधे और मनुष्य के बीच तादात्म्य (Empathy) स्थापित करने की कुंजी को नहीं जान लेते और यह नहीं सीख लेते कि यह सम्बन्ध कैसे स्थापित होता है तब तक प्रयोगशालाओं में किये जाने वाले सारे परीक्षण निष्फल रहेंगे बशर्ते कि ये सारे परीक्षण विशेष तथा प्रशिक्षित निरीक्षकों के द्वारा न किये जावें। आध्यात्मिक विकास का इसके साथ अन्योन्याश्रित संबंध है। यह नहीं जानने के कारण कि सृजतात्मक प्रयोग याने प्रयोगकर्ता स्वयं अपने प्रयोगों के अनिवार्य अंग बने, बहुत सारे वैज्ञानिकों का दर्शन ही उल्टा हो जाता है।
___वोगल का कहना है कि हालांकि मनुष्य पौधे को प्रभावित कर सकता है फिर भी उसके परिणाम सदा सुखद ही नहीं होते । मनोचिकित्सा का कार्य करने वाले अपने एक मित्र जो कि स्वयं यह जानने के लिए आये थे कि पौधों के अन्वेषण में कुछ सच्चाई भी है क्या? उन्हें वोगल ने फिलोडेल्ड्रोन पौधे पर पन्द्रह फीट की दूरी से गहरी भावनात्मक उमियां प्रसारित करने को कहा । पौधे में तत्काल बहुत गहरी प्रतिक्रिया उभर आई और तुरन्त पौधा मूछित हो गया । जब वोगल ने उस मनोचिकित्सक को पूछा कि आपके मस्तिष्क में क्या चिन्तन चला था तो उसने उत्तर दिया कि उसने अपने मानस में वोगल के पौधे की अपने घर के फिलोडेल्ड्रोन से तुलना की थी और सोचा था कि वोगल का पौधा उनके पौधे की १५२
तुलसी प्रज्ञा
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