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________________ प्रथम-मुझे आश्चर्य हुआ कि कैसे पौधे में एकदम ठीक से प्रवेश करू ? मैंने सजगता से निर्णय किया कि मेरी कल्पना इस उपरोक्त भाव को पकड़े । इतने में ही मैंने पाया कि मैं उसकी जड़ के द्वार से मुख्य शाखा के भीतर प्रवेश कर रही हूं। एक बार अन्दर हो जाने पर मैंने गतिशील सैल और जल को शाखा के भीतर उर्ध्व यात्रा करते हुए देखा और उस उर्ध्व गतिमान प्रवाह के भीतर स्वयं को गतिशील किया। कल्पना में विस्तृत होती हुई पत्तियों की ओर पहुंचने पर मैंने अनुभव किया कि मैं स्वयं कल्पना जगत से बाहर आकर एक ऐसी भूमिका पर पहुंची हूं जिस पर मेरा कोई नियन्त्रण या प्रभुत्व नहीं रह गया है। (उस अवस्था में) मानसिक चित्र नहीं थे बल्कि ऐसा अनुभव हुआ कि “मैं एक विस्तृत फैलती हुई चैतन्य भूमिका का एक अंग हूं और उसे भर रही हूं। यह मुझे ऐसा लगा कि मैं उसे शुद्ध चैतन्य ही कह सकती हूं। मैंने अहसास किया कि पौधे ने मुझे अपनाया तथा स्वीकारात्मक संरक्षण भी प्रदान किया। समय का विलय हो गया और मात्र यह अनुभव रहा कि सारे अस्तित्व में एकता है और सारे आकाश में एकता है। मुझे सहज मुस्कराहट हुई और मैंने अपने आपको पौधे के साथ एक होने दिया। उसके बाद श्री वोगेल ने जैसे ही मुझे शिथिल होने का आदेश दिया, कि मैंने पाया कि मैं बहुत थकी हुई किन्तु शांत हूं। मेरी सारी ऊर्जा (शक्ति) पौधे के साथ थी।" . चार्ट पर अंकित होते हुए रेकार्डों का निरीक्षण करते हुए श्री वोगेल ने देखा कि जैसे ही लड़की पौधे के बाहर आ गई अचानक सुई रुक गई । दूसरे मौकों पर जब वह (लड़की) पुनः प्रविष्ट हुई (याने पौधे में) वह पौधे की सेल की जांतरिक बनावट और उसके ढांचे का पूर्ण विवरण बताने में समर्थ हुई। उसने विशेष रूप से बताया कि पौधे का पत्ता इलेक्ट्रोड से बुरी तरह जल गया है। जब वोगल ने इलेक्ट्रोड हटाया तो उसने देखा कि पत्ते के आरपार एक छेद हो गया है। उसके पश्चात् वोगल ने उसी प्रयोग को कई अन्य लोगों के द्वारा यह निर्देश करते हुए पुनः करवाया कि सिर्फ एक पत्ती में ही प्रवेश करो और उस पत्ती के प्रत्येक सेल का निरीक्षण करो । सभी ने सेल के विभिन्न अंगों का, सेल के ढांचे में स्थित डी० एन० ए० माल्यूक्यूल तक विस्तृत संगठनात्मक विवरण एक जैसा प्रस्तुत किया। ____ इस प्रयोग द्वारा श्री वोगल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हम अपने शरीर के प्रत्येक सेल में जा सकते हैं और हमारी उस समय की मन:स्थिति के आधार पर उन्हें (उन सेलों को) अलग-अलग रूप से प्रभावित कर सकते हैं । एक न एक दिन शायद इससे रोग के मूल का निदान किया जा सके। यह जानते हुए कि बच्चे, वयस्क लोगों से ज्यादा खुले दिमाग के होते हैं वोगल ने बच्चों को पौधों के साथ आदान-प्रदानात्मक सम्पर्क स्थापित करने की विधि सिखाने की शुरुआत की। प्रथम, वह उन्हें पत्तों का अनुभव करने को कहता ताकि वे उसके तापमान, ढांचों और स्पर्श का विस्तृत वर्णन कर सकें । उसके पश्चात् वह उन्हें पत्ते के ऊपरी और निचले हिस्से पर कोमलता से हाथ फिराने से पहले उन्हें मोड़ने के लिए कहता ताकि पत्तों की लचक के प्रति वे सजग हो सकें । अगर उसके शिष्य इनके स्पन्दनों के अनुभवों का वर्णन करते आनन्दित होते तो वोगल उन्हें अपने हाथों को पत्तियों से दूर कर उनसे निकलने वाली खण्ड ४, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
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