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को निकालने के लिये हाथ बढाया, तपस्वियों ने उसके हाथ को पकड़ लिया। उस स्थिति में भी बालमुनि अदीन रहा और विशुद्ध परिणाम रखे । उसे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।
देवी ने (तपस्वियों को लक्षित कर) कहा---'तुम सब क्रोध से अभिभूत हो। मैं तुम्हें वन्दना कैसे करूँ ?' (तब वे) तपस्वी वैराग्य को प्राप्त होकर बोले-'हमारा अपराध निष्फल हो। अहो ! बाल मुनि की कितनी महानता! हमने उसकी आशातना की है (उसे कष्ट पहुँचाया है।) उनकी भावना भी विशुद्ध होती गयी और उन्हें भी केवलज्ञान प्राप्त हो गया।
सुत पद
बत्तारि सुता पण्णत्ता, तं जहा–प्रतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले।
पुत्र चार प्रकार के होते हैं :-(1) अतिजात (पिता से अधिक), (2) अनुजात (पिता के समान), (3) उपजात (पिता से हीन), (4) कुलांगार (कुल के लिए अंगारे जैसा; कुल दूषक)।
-ठाणं, 4/34
तुलसी प्रज्ञा
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