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________________ चार प्रकार के साधक आचार्य श्री तुलसी मानवीय मनोवृत्ति की सबलता और निर्बलता को परिलक्षित कर अथवा साधना की क्षमता और अक्षमता का चिन्तन कर शास्त्रकारों ने चार प्रकार के साधक बताए हैं (1) सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ। (2) सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सियालत्ताए विहरइ । (3) सियालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ । (4) सियालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सियालत्ताए विहरइ । कुछ साधक अमित वैराग्य व असीम उत्साह के साथ संयम पथ पर आरूढ़ होते हैं और आजीवन उसी उत्साह, श्रद्धा व विरक्ति से स्वीकृत पथ पर गति करते रहते हैं। कुछ साधक जब संयम जीवन स्वीकार करते हैं, उस समय उनमें अत्यन्त उत्साह होता है एवं वे विरक्ति की चरम पराकाष्ठा पर पहुंचे होते हैं। पर धीरे-धीरे उत्साह क्षीण होता चला जाता है, विरक्ति मन्द पड़ जाती है और संयम के प्रति क्रमश: अश्रद्धा के भाव होते चले जाते हैं । कुछ व्यक्ति जब दीक्षित होते हैं, तब न उनमें उत्साह का अतिरेक होता है और न विरक्ति और श्रद्धा का अमित बल ही। किसी आकस्मिक निमित्त को पाकर संयम जीवन स्वीकार कर लेते हैं पर आगे जाकर उनमें विरक्ति का स्रोत फूट पड़ता है, उनकी डगमगाती आस्था को आधार मिल जाता है और वे अत्यन्त वैराग्य के साथ अपनी संयम यात्रा को निर्बाध सम्पन्न करते हैं। कुछ व्यक्ति दीक्षित होते समय भी अनुत्साही होते हैं और दीक्षित हो जाने के बाद भी संयम पालन में जीवन भर अनुत्साही ही रह जाते हैं। इसीलिये उक्त ठाणं सूत्र का पाठ यह सूचित करता है किएक सिंहवृत्ति से अभिनिष्क्रमण कर सिंहवृत्ति से विचरण करता है। एक सिंहवृत्ति से अभिनिष्क्रमण कर सियालवृत्ति से विचरण करता है। एक सियालवृत्ति से अभिनिष्क्रमण कर सिंहवृत्ति से विचरण करता है। एक सियालवृत्ति से अभिनिष्क्रमण कर सियालवृत्ति से विचरण करता है । खण्ड ४, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
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