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हिंसा के चार भंग
(श्रीचन्द रामपुरिया, बी० कॉम, बी० एल०)
दशवकालिक की श्रीमद् भद्रबाहु कृित नियुक्ति में उल्लेख है कि हिंसा चार प्रकार की होती है, जैसे द्रव्यत: हिंसा, भावतः हिंसा आदि । बृहद् कल्पसूत्र भाष्य में श्री संघदास गणि क्षमाश्रमण ने द्रव्य और भाव के योग से संभव चार भंगों के नाम इस प्रकार बताये हैं : 1. द्रव्यतः हिंसा भावत: हिंसा नहीं 2. भावत: हिंसा द्रव्यतः नहीं, 3. द्रव्यतः हिंसा भावतः हिंसा और 4. न द्रव्यतः हिंसा न भावतः हिंसा । दशवकालिक की चूणि में जिनदास गणि ने भंगों का क्रम इस प्रकार रखा है : 1. द्रव्यत: हिंसा भावतः हिंसा, 2. द्रव्यतः हिंसा भावत: नहीं, 3. भावतः हिंसा द्रव्यतः नहीं और 4. न भावतः हिंसा न द्रव्यत: हिंसा । आचार्य हरिभद्र सूचित क्रम जिनदास गणि के अनुसार है ।
आगमों में द्रव्य हिंसा, भाव हिंसा शब्द प्राप्त नहीं हैं । अत: हिंसा के इन चार प्रकारों का उल्लेख भी वहाँ नहीं है। उक्त भंगों की विस्तृत व्याख्या नीचे दी जा रही है : 1. द्रव्यतः हिंसा भावत: नहीं :
संघदास गणि के अनुसार समिति-युक्त साधु द्वारा जो कदाचित् हिंसा हो जाती है वह द्रव्यतः हिंसा है. भावतः नहीं । जिनदास गणि ने इस भंग को समझाने के लिए केवल
1. द० नि० 45: हिंसाए पडिवक्खो होइ अहिंसा चउम्विहा सा उ ।
दव्वे भावे अ तहा, अहिंस जीवांइवाओ ति ॥ 2. भाष्य गा० 3932 से 3934 3. दश० 111 चू० पृ० 20 :
तत्थ भंगा चत्तारि-दव्वतोवि एगा हिंसा भावओवि, एगा हिंसा दवओ न भावओ, एगा भावओ न दवओ, अण्णा ण दव्वओ न भावओ। 4. दश० 111 हारि० पृ० 48 : द्रव्यतो भावश्चेत्येको भङ्गः, तथा द्रव्यतो नो भावतः,
तथा न द्रव्यतो भावतः, तथा न द्रव्यतो न भावत:। 5. भाष्य गा० 3933 :
आहच्च हिंसा समितस्स जा तू, सा दव्वतो होति ण भावतो उ । भावेण हिंसा तु असंजतस्सा, जे वा वि सत्ते ण सदा वधेति ।।
खण्ड ४, अंक २
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