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जैन दर्शन में नैतिक मूल्यांकन का विषय : एक तुलनात्मक अध्ययन
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कर्त्ता का प्रत्येक कर्म जो नैतिक मूल्यांकन का विषय बनता है, किसी हेतु से अभिप्रेरित होकर प्रारम्भ होता है और अन्त में किसी परिणाम को निष्पन्नकर परिसमाप्त होता है । इस प्रकार कार्य का विश्लेषण हमें यह बताता है कि प्रत्येक कार्य में एक हेतु (उद्देश्य) होता है, जिससे कार्य का प्रारम्भ होता है और एक फल होता है जिसमें कार्य की परिसमाप्ति होती है । दूसरे शब्दों में हेतु को कार्य का मानसिक पक्ष और फल को उसका भौतिक परिणाम कहा जा सकता है। हेतु का निकट संबंध कर्ता के मनोभावों से है, जबकि फल का निकट सम्बन्ध कर्म से है । हेतु पर दिया निर्णय वस्तुतः कर्ता के सम्बन्ध में होता है जबकि फल पर दिया हुआ निर्णय वस्तुतः कर्म के सम्बन्ध में होता है । नीतिज्ञों के लिए यह प्रश्न विवाद का रहा है कि कार्य शुभत्व एवं अशुभत्व का मूल्यांकन उसके हेतु के सम्बन्ध में किया जाए या उसके फल के सम्बन्ध में, क्योंकि कभी कभी शुभत्व एवं अशुभत्व की दृष्टि से हेतु और फल परस्पर भिन्न पाए जाते हैं - शुभ हेतु में भी अशुभ परिणाम की निष्पत्ति और अशुभ हेतु में भी शुभपरिणाम की निष्पत्ति देखी जा सकती है । यद्यपि ग्रीन यह मानते हैं कि शुभेच्छा या शुभ हेतु से किया गया कार्यं सर्वदा शुभ परिणाम देने वाला होता है, लेकिन जागतिक अनुभव हमें यह बताता है कि कभी कभी कर्त्ता द्वारा अनपेक्षित कर्म - परिणाम भी प्राप्त हो जाते हैं । और अनपेक्षित कर्म-परिणाम को परिणाम मानने पर ग्रीन की कर्म के उद्देश्य और फल में एकरूपता की धारणा टिक नहीं पाती है । यदि कार्य के हेतु और कार्य के वास्तविक परिणाम में एकरूपता नहीं हो तो यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इनमें से किसे नैतिक निर्णय का विषय बनाया जाये। पाश्चात्य नैतिक चिन्तना में इस समस्या को लेकर स्पष्टतया दो प्रमुख मतवादों का निर्माण हुआ है, जो फलवाद और हेतुवाद के नाम से जाने जाते हैं । फलवादी धारणा का प्रतिनिधित्व बेन्थम और मिल करते हैं । बेन्थम की मान्यता में हेतुओं का अच्छा या बुरा होना उनके परिणामों पर निर्भर है । मिल की दृष्टि में 'हेतु' के सम्बन्ध में विचार करना यह नैतिकता का प्रश्न ही नहीं है, उनका कथन है कि हेतु को कार्य की नैतिकता से कुछ भी करना नहीं होता । 1 दूसरी ओर हेतुवादी परम्परा का प्रतिनिधित्व कांट, बटलर आदि करते हैं । मिल के ठीक विपरीत कांट का कहना है कि "हमारी क्रियाओं के परिणाम उनको नैतिक
1. नीति शास्त्र की रूप रेखा पृ० 75
( कर्म-मीमांसा)
डॉ० सागरमल जैन
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तुलसी प्रज्ञा
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