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8. णादव्वं (17)
णायव्वं 9. णादव्यो (25)
णायव्वं 10. णिज्जेत्ती (142)
णिरुक्ति 11. तइया (162)
तइआ 12. तागो (60)
चागो 13. ताव (36)
तारिसो 14. तीदो (31)
तीओ 15. तुरीय (59)
तुरिअ 16. देहो (36)
देसो (पयेसो) 17. धरिदे (106)
धरेंत 18. धरु (140)
धारय 19. पावोग्गा (24)
पाओग्गा 20. पिज्जुत्तो (141)
परुविओ 21. मणुव (77)
मणुअ 22. मुचदि (58)
मुंचइ (मुअइ) 23. मुच्चइ (97)
मुचइ (मुअइ) 24. वचगुत्ती (67)
वयणगुत्ती 25. वदिगुत्ती (69)
वयणगुत्ती 26. विगडि (128)
विडि 27. संठवित्त (109)
संठवेऊण (ठविऊण) 28. संपदा (32) 29 सज्झाउ (153)
सज्झायं 30. साकट्ठ (175)
साक्खत्थं 31. सुण (54)
सुणउ ___ इन शब्दों में 'जोण्ह' शब्द का टीकाकारों ने जैन' अर्थ किस प्रकार किया है, यह ज्ञात नहीं होता। संभवतः 'जोण्ह' शब्द पूर्ण ज्ञानी के अर्थ में प्रयुक्त होने वाला कोई देशी शब्द है, जो कुन्दकुन्द के समय में प्रचलित रहा होगा। धरु एवं सज्झाउ जैसे अपभ्रंश शब्दों के प्रयोग भी विचारणीय हैं।
संपइ
खण्ड ४, अंक २
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