SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाण : एक तुलनात्मक विश्लेषण साध्वी प्रमुखा श्रीकनकप्रभा विश्व-चेतना के बहुरंगी व्यक्तित्व को समझने के लिये मनुष्य के पास दो साधन हैं(i) आत्मज्ञान (ii) बौद्धिक चिन्तन आत्मज्ञान पारदर्शी स्फटिक की भांति निर्विवाद होता है। उस पर विश्व-चेतना के जो प्रतिबिम्ब गिरते हैं उनमें संदिग्ध जैसा कुछ भी नहीं रहता पर आत्मज्ञान की सर्वोच्च भूमिका तक आरोहण करने वाले विरले ही होते हैं इसलिये बौद्धिक चेतना की स्फरणा को उपेक्षित नहीं किया जा सकता । बौद्धिक चेतना की सतह पर दर्शन का उदय होता है। दर्शन का उद्देश्य होता है हेय-उपादेय की मीमांसा। इसके आधार पर मूल्य निर्णय की दृष्टियाँ स्थिर होती हैं। दर्शन की दो धाराएं हैं - सैद्धान्तिक और बौद्धिक । सैद्धान्तिक धारा का उत्स किसी परम्परा से अनुबन्धित रहता है और बौद्धिक धारा का बहाव उन्मुक्त होता है। भारतीय दार्शनिकों ने परम्परा-निर्वाह की दृष्टि से दर्शन के क्षेत्र में नए आयाम खोले उसी प्रकार वे बौद्धिक उत्कर्ष का स्पर्श करते हुए भी आगे बढ़े हैं । दर्शन का एक अंग है-न्याय, इसे तर्क विद्या भी कहा जाता है । मीमांसा की व्यवस्थित पद्धति अथवा. प्रमाण की मीमांसा, न्याय शास्त्र का विषय है और हमारी वर्तमान चर्चा का भी यही विषय है। न्याय न्याय का अर्थ है युक्ति के द्वारा प्रमेय (वस्तु) की परीक्षा करना। युक्ति वहाँ घटित होती है जहां साध्य और साधन में परस्पर किसी प्रकार का विरोध न रहे। साध्य और साधन में विरोध उद्भावित करने वाली युक्तियाँ प्रमेय के परीक्षण में सफल नहीं हो सकतीं। न्याय के मुख्यतः चार अंग हैं (i) प्रमाता, (ii) प्रमाण, (iii) प्रमेय (iv) और प्रमिति । प्रमाता ज्ञाता होता है, प्रमाण ज्ञान है, प्रमेय वस्तु है और प्रमिति ज्ञान का फल है। प्रमाता प्रमेय की परीक्षा में या किसी भी प्रवृत्ति में प्रवृत्त होता है तो उसका हेतु होता है अर्थसिद्धि । अर्थसिद्धि के तीन प्रकार हैं तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy