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द्रव्याथि के नयन में सब द्रव्य आते, पर्याय अर्थिवश पर्याय मात्र आते । 'एक्सरे' हमें हृदय-अन्दर का दिखाता,
तो कमरा शकल ऊपर की बताता।।696।। इसी तरह और भी उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं जो समीक्ष्य ग्रंथ की अनेक विशेषताओं के परिचायक हैं । ग्रंथ के प्रारम्भ में आचार्य विद्यासागर जी ने "मनोभावना" द्वारा प्रस्तुत अनुवाद के निर्माण के विषय में स्पष्टीकरण किया है, साथ ही प्रेरणादायी आध्यात्मिक संदेश भी दिया है। इसके बाद पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्य की "आद्य मिताक्षर" नाम से भूमिका भी दी नई है, जिसमें आ० विद्यासागर जी का परिचय, प्रस्तुत अनुवाद की संक्षिप्त विशेषताओं का दिग्दर्शन तथा श्रमण शब्द की सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की गई है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुवादक आचार्य विद्यासागर जी युवा होते हुए भी ज्ञान और चारित्र की दिशा में पहुंचे हुए सन्त हैं। हिन्दी और संस्कृत भाषाओं में आपकी कई रचनायें प्रकाश में आ चुकी हैं। इसी प्रकार अन्यान्य महत्त्वपूर्ण मूल ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद तथा मौलिक ग्रन्थों से जैन साहित्य की श्री वृद्धि करेंगे, ऐसी आशाय हैं ।
समीक्ष्य ग्रन्थ की छपाई यद्यपि सुन्दर है, किन्तु कहीं-कहीं घूफ संबंधी अशुद्धियाँ तो अर्थ का अनर्थ ही कर देती है आशा है इनके परिमार्जन का आगे ध्यान रखा जाएगा। इस सुन्दर एवं संग्रहणीय कृति के लिए अनुवादक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं ।
-डॉ० फूलचन्द जैन प्रेमी
मुणिचंद-कहाणर्य (गुजराती), लेखक-डा० के० आर० चन्द्र, प्रकाशक-नवभारत प्रकाशन एण्ड कम्पनी अहमदाबाद, मूल्य छ: रुपये, पृ० 140, द्वितीयावृत्ति, 1977
प्रस्तुत कृति का अंश शीलांकाचार्य द्वारा विरचित “च उत्पन्नमहापुरिसचरिय" से लिया गया है। इसमें मुनिचन्द्र कथानक का समीक्षात्मक विश्लेषण है। यह कथा प्राकृत की एक लोककथा पर आधारित है, जिसमें नारी के विश्वासघात का निबंधन किया गया है । यत: पुस्तक पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर लिखी गई है, अतः इसमें छात्रों एवं अध्यापकों के लिए समान रूप से उपयोगी भाषा-परिचय आदि का समावेश है।
गुजराती भाषा के माध्यम से प्राकृत भाषा का प्रारम्भिक अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए यह पुस्तक अतीव उपयोगी है । अन्त में दिए गए शब्दार्थ तथा टिप्पणियों से पुस्तक की उपयोगिता और बढ़ गई है।
1-डॉ० कमलेश कुमार जैन
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तुलसी प्रज्ञा
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