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________________ (5) "ब्राह्मण का सुवर्ण चोरी करने पर केशों को छितरा राजा के समीप जा कर कहे-'मैं चोर हूं। आप मुझे शासित करें।' तब राजा उसे उदुम्बर शस्त्र प्रदान करे । चोर उससे आत्मवध करे । इससे वह पवित्र होता है' 7 अथवा उपवास कर घृत से शरीर को अभिषिक्त कर गोमय अग्नि में पैरों से लेकर समस्त देह को जला डाले । उस तरह मरने से वह पूत-पवित्र होता है ।' 80 (6) आपस्तम्बीय धर्मसूत्र में कहा है : (क) “गुरुतल्पगामी वृषण के सहित शिश्न को काट कर अंजलि में रखकर न लौटने के लिए दक्षिण दिशा में चला जाय । अथवा जलती हुई आग में प्रवेश कर अपने को समाप्त कर दे।" (ख) “मद्यप आग से तपाई हुई सुरा का पान करे।" __ (ग) "बिखरे बालोंवाला चोर मूसल लेकर राजा के पास जा कर अपने कर्म को बताये। राजा उससे उसको मार दे । इस प्रकार मारे जाने पर मोक्ष होता है।" (घ) “अादेश दिये जाने पर आदेश देने वाले को पाप लगता है। वह अग्नि में प्रवेश करे अथवा तीव्र तप करे । अथवा अपने को टुकड़े-टुकड़े कर समाप्त कर दे।"81 79. ब्राह्मणसुवर्णहरणे प्रकीर्य केशान् राजानमधिवित् स्तेनोऽस्मि भो: शास्तु मां भवानिति तस्मैराजोदुम्बरं शस्त्र दद्यात्, तेनाऽऽत्मानं प्रमाययन्मरणात् पूतो भवतीतिविज्ञायते ॥ 20/41 । 80. निष्कालको वा घृताक्तो गोमयाग्निना पादप्रभृत्यात्मानमभिदाहयेन्मरणात्पूतो ___ भवतीति विज्ञायते ।। 20/42 । 81. गुरुतल्पगामी सवृषणं शिश्नं परिवास्यांजलावाधाय दक्षिणां दिशमना वृत्ति व्रजेत् ॥1॥ ज्वलिनां वा सूमि परिष्वज्य समाप्नुयात् ।।2।। सुरापोग्निस्पशी सुरां पिबेत् ।।3।। स्तेनः प्रकीर्णकेशो मुसलमादाय राजानं गत्वा कर्मावक्षीत । तेननं हन्याद्वधे मोक्ष : ।।4।। अनुज्ञातेनुज्ञातारमेनः ।।5।। अग्निं वा प्रविशेत्तीक्ष्णं वा तप आयच्छेत् ।।6।। भक्तापचयेन वात्मानं समाप्नुयात् ।।7।। 19/25 तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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