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________________ दूसरी जगह हारीत कहते हैं : "जो धर्मशील और दृढ़व्रत नारी अपने पति के मरने पर उसका अनुगमन करती है, उसका उसे जो फल होता है वह सुनो । वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक पूजित होती है जितने शरीर में रोम होते हैं अर्थात् साढ़े तीन करोड़ वर्षों तक पूजित होती है । जिस तरह मन्त्र जाननेवाला बिल से सर्प को बलात् खींच लेता है, उसी तरह नारी अपने तपोबल से मृत भर्तार को साथ ले परलोक में जाती है । जो स्त्री मरने के बाद अपने पति का अनुगमन करती है वह तीन कुलों को पुनीत करती है - मातृक, पैतृक और पति के 122 इससे स्पष्ट है कि हारीत का पूर्व कथन उनके अनुसार ही निरपवाद नहीं है । वह सर्व आत्मघात स्पर्शी नहीं है । महाभारत (आदिपर्व 178 / 20 ) में कहा है : "आत्मघात करनेवाला पुरुष शुभ लोकों को नहीं पाता । " 23 इस कथन का सही मूल्यांकन उसके पीछे जो घटना है उसको जानने से ही हो सकता है । घटना इस प्रकार है राजा कृतवीर्य के वंशज क्षत्रियोंने भृगुवंशी ब्राह्मणों को मारना शुरू किया। वे गर्भस्थ बालकों की भी हत्या करने लगे। एक ब्राह्मणी ने अपने तेजस्वी गर्भ को एक और की जांघ को चीरकर उसमें रख लिया । उरु भेदन कर उत्पन्न होने से बालक और्व नाम से विख्यात हुआ । उसने भृगुवंशी पूर्वजों के वध का बदला लेने के लिए सब लोकों के विनाश का निश्चय किया और तपस्या द्वारा अपनी शक्ति बढ़ाने लगा । उसने उग्र तपस्या द्वारा देवता, असुर और मनुष्यों सहित सब लोकों को संतप्त कर दिया । तब पितरों ने पितृलोक से आकर और्व से कहा: “तुम्हारी उग्र तपस्या का प्रभाव हम लोगों ने देख लिया है अपना क्रोध रोको | यह न समझना कि जिस समय क्षत्रिय लोग हमारी हिंसा कर रहे थे, असमर्थ होने के कारण हम लोगों ने अपने कुल के वध को चुपचाप सह लिया । जब हमारी आयु बहुत बड़ी हो गई और 22. मृते भर्तरि या नारी कर्मशीला दृढव्रता । अनुगच्छति भर्तारं शृणु तस्यास्तु यत्फलम् ।। तिस्रः कोट्योर्ध कोटी च यानि लोमानि यानि वै । तावन्त्यब्दसहस्राणि स्वर्गलोके महीयते ।। मन्त्रग्राही यथा सर्प बलादुद्धरते विलात् । तद्वद्भर्तारमादाय मृतं याति तपोबलात् ॥ मातृकं पैतृकं चापि यत्र चैव प्रदीयते । कुलत्रयं पुनात्येषा भर्तारं यानुगच्छति ॥ 23. आत्महा च पुमांस्तात न लोकाल्लभते शुभान् । ७० ( मिताक्षरा द्वारा याज्ञवल्क्य 1 /86 पर उद्धृत ) Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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