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________________ लाता है । 2 (4) इच्छित मरण : शास्त्रों का विधान न होने पर भी इच्छापूर्वक प्राणों का त्याग करना - उनका वियोग करना इच्छित मरण है । जैसे क्रोधादिवश मरने की इच्छा से अग्नि में गिर जाना, जल में डूब जाना, पर्वत से गिर पड़ना, विष खा लेना, शस्त्र से आघात कर लेना, अनशन करना, महाप्रस्थान करना इच्छित मरण बताए गए हैं। स्मृतियों में किस मृत व्यक्ति का अशौच नहीं होता इस प्रसंग में निम्न लेख भी मिलते हैं : (क) जो राजदंड से निहत अथवा श्रृंगी (सींगवाले प्राणी), दंष्ट्री (दंष्ट्रयुक्त प्राणी) एवं सरिसृप - सर्पादि द्वारा निहत हैं एवं जो आत्मघाती हैं उनका सद्य शौच होता है— उनका किसी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए । (ख) जो पापकर्मा हैं उन्हीं का चाण्डाल, जल, सर्प, ब्राह्मण, विद्युत एवं तीक्ष्ण दंष्ट्रयुक्त प्राणियों एवं पशुओं से मरण होता है । उनको दिया गया उदक अथवा पिण्डदान उन तक नहीं पहुंचता । अन्तरिक्ष में ही विनाश को प्राप्त होता है । उनका प्रशोच नहीं करना चाहिए। उनके लिए अश्रुपात न करे और न उनका दाहादि कर्म करे । ६२ 2. (क) शस्त्रं खड्गादि तत्रापि प्रमादात् संभवत्येव । अग्न्यादीनि प्रसिद्धानि तत्र सर्वत्रापि प्रमादात् संभवत्येव । उद्बन्धनं रज्ज्वादिना । अत्रापि परिहासादिना अनिच्छतोऽपि सम्भवति ( गौतम 14 / 11 मष्करि भाष्य ) । (ख) प्रमादादथ निःशंकमकस्मात् विधिचोदितः । श्रृं. गि- दंष्ट्रि - नखि व्याल - विप्र - विद्युज्जलाग्निभिः । चण्डालैरथवा चौरैर्निहतो यत्र कुत्रचित् । तस्य दाहादिकं कार्यं यस्मान्न पतितस्तु सः ॥ - ब्रह्मपुराण ( पराशर 3 / 10 की माधव टीका में उद्धृत ) 3. काष्ठजललोष्टपाषाणस्त्रविषरज्जुभिर्य आत्मानमवसादयति स आनहा भवति ( वशिष्ठ 23115) 4. हतानां नृपगोविप्रैरन्वक्षं चात्मघातिनाम् (याज्ञवल्क्य 3/ 20 के बाद) 5. चण्डालादुदकात्सर्पात् ब्राह्मणाद्व द्युतादपि । दंष्ट्रिभ्यश्च पशुभ्यश्च मरणं पापकर्मणाम् ।। उदकं पिण्डदानं च प्रेतेभ्यो यत्प्रदीयते । नोपतिष्ठति तत्सर्वमन्तरिक्षे विनश्यति ॥ नाशौचं नोदकं नाश्रु न दाहाद्यं च कर्म च । ब्रह्मदण्डतानां च न कुर्यात्करधारणम् ॥ - यम ( अपरार्क द्वारा पृ. 877 पर उद्धत ) Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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