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जैनेतर भारतीय चिन्तन में मरण की विधायें
श्रीचन्द रामपुरिया
1 मरण के प्रकार
हिन्दूशास्त्रों के अनुसार मरण पांच प्रकार के बताये जा सकते हैं :
(1) काल-प्राप्त मरण : आयु-समाप्त होने पर जीव की जो स्वाभाविक मृत्यु होती है उसे काल-प्राप्त मरण कहा गया है । यह मरण सब सांसारिक प्राणियों का होता है।
(2) अनिच्छित मरण : प्राकृतिक प्रकोप जैसे बाढ़ आ जाने, दुर्भिक्ष हो जाने, अग्नि लग जाने, बिजली गिरने अथवा दुर्घटनावश पर्वत, वृक्षादि से गिर जाने, सर्प आदि के काटने, सींग, नख, दंष्ट्र वाले पशुओं के हठात् आक्रमण करने आदि से मृत्यु को प्राप्त होना अनिच्छित मरण है।
(3) प्रमाद मरण : अनवधानता-असावधानी के कारण निःशंकावस्था में अकस्मात् अग्नि, जल, शस्त्र, रज्जु, पशु आदि से मृत्यु हो जाना प्रमाद मरण कहा
1. प्रायः महाप्रस्थानम् । तदनिच्छतोऽपि राजभयादिना संभवतीति । अनाशकं
अभोजनं एतदपि दुर्भिक्षादादनिच्छोतोऽपि संभवतीति (यहां का अंश टि. सं. 2 (ख) में दिया हुआ है)। प्रपतनं पर्वताद्वक्षाद्वा तत्रापि दैवादबुद्धिपूर्व मपि सम्भवति (गौतम 14/11 मष्करि भाष्य)।
खं. ३ अं. २-३
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