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पाठ और पाठान्तर का स्वीकार करना ही उचित प्रतीत हुआ। णमो सव्वसाहूणं' पाठ मौलिक है या 'णमो लोए सव्वसाहूणं' पाठ मौलिक है—इसकी चर्चा यहां अपेक्षित नहीं है। यहां इतनी ही चर्चा अपेक्षित है कि अभयदेवसूरी को भगवती सूत्र की प्रतियों में णमो सव्वसाहूणं' पाठ प्राप्त हुआ और क्वचित् णमो लोए सवयसाहूणं' पाठ मिला।
• नमो अरहंतानं-नमो सव-सिधानं-यह पाठान्तर खारवेल के हाथीगुम्फा लेख में मिलता है। इसमें अंतिम नकार भी णकार नहीं है, सिद्ध के साथ सर्व शब्द का योग है और 'सिधानं' में द्वित्व ध प्रयुक्त नहीं है। यह पाठ भी बहुत पुराना है, इसलिए इसे भी उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
1. प्राचीन भारतीय अभिलेख, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ 26 ।
तुलसी प्रज्ञा
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