SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्यादवाद के फलित मुनि नथमल 1. तार्किक जगत् में कार्य-कारण का सिद्धान्त सार्वभौम माना जाता है, किन्तु स्याद्वाद के अनुसार यह सार्वभौम नियम नहीं है। कार्य-कारण का नियम स्थूल जगत् में घटित होता है । सूक्ष्म जगत् का अपना स्वतंत्र नियम है । कर्म शास्त्रीय भाषा में कर्म के विपाक या विलय से जो घटित होता है उसमें कार्य-कारण का नियम खोजा जा सकता है । स्थूल परमाणु-स्कंधों के परिवर्तन में भी कार्य-कारण का नियम लागू होता है । स्वाभाविक परिवर्तन ( पारिणामिक भाव) में कार्य-कारण का नियम लागू नहीं होता। एक काले वर्ण का परमाणु निश्चित अवधि के बाद दूसरे वर्ण का हो जाता है । प्रश्न हो सकता है कि उसके वर्ण-परिवर्तन का कारण क्या है ? कोई कारण नहीं है। उसके परिवर्तन के हेतु की व्याख्या नहीं की जा सकती। यह उस परमाणु का स्वगत नियम है। वस्तु का अर्थ-पर्याय (एक क्षणवर्ती पर्याय) कार्य-कारण के नियम से मुक्त होता है । द्रव्य को प्रत्येक क्षण में बदलना पड़ता है। वर्तमान क्षण का अस्तित्व दूसरे क्षण में तभी सुरक्षित रहता है जब वह दूसरे क्षण के अनुरूप अपने आपको ढाल लेता है। अर्थ-पर्याय को अभिव्यक्ति देने वाला एक प्रसिद्ध श्लोक है अनादिनिधने लोके, स्वपर्यायाः प्रतिक्षणम् । उत्पद्यन्ते विपद्यन्ते, जलकल्लोलवज्जले ।। -द्रव्य अनादि और अनन्त है। उसमें प्रतिक्षण स्वपर्याय वैसे ही उत्पन्न और विलीन होते रहते हैं जैसे जल में तरंगें। खं. ३ अं. २-३ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy