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शालिग्रामनिघण्टु भूषणम् में कारस्कर, किम्पाक, विषतिन्दुक, विषद्र म, गरद्रुम, रम्यफल, कुपाक, कालकूटक को एक दूसरे का पर्यायवाची माना है ।।
इस प्रकार एक दृष्टि से महाकाललता, उरुकाल, काकमईक आदि किम्पाक के पर्यायवाची हैं और दूसरी दृष्टि से कारस्कर, विषतिन्दुक, विषद्रुम आदि । अतः सहज ही प्रश्न उपस्थित होता है कि किम्पाकफल वृक्ष विशेष का फल है या लता विशेष का ?
5. किंपाक शब्द का अर्थ होता है-जिसका पाक-परिणाम कुत्सित हो। किम्पाकफल अर्थात् वह फल जिसका अन्तिम परिणाम अच्छा न हो । श्रृंगारशतक का निम्नश्लोक इस बात को स्पष्ट कर देता है
यदेतत् पूर्णेन्दुद्युतिहरमुदाराकृतिधरं मुखाब्जं तन्वंडयाः किल वसति यत्राधरमधु । इदं तत् किंपाकद्र मफलमिवातीव विरसं व्यतीतेऽस्मिन् काले विषमिव भविष्यत्यसुखदम् ।
सम्भव है किम्पाक शब्द के उक्त अर्थ को ग्रहण कर विषलता एवं विषवृक्ष दोनों के विषफलों को किपाकफल की संज्ञा दे दी गई हो। अत: वास्तविक किंपाक फल किस लता या वृक्ष का फल है और वह कैसा होता है यह जानना आवश्यक है।
उक्त विवेचन से इतना तो प्रगट होता है कि किम्पाकफल बाह्य रूप में मोहक होते हैं तथा खाने में सुस्वादु होने से अजानकार लोगों द्वारा बिना हिचकिचाहट खा लिए जाते हैं।
जातक अट्ठकथा (536) के अनुसार किम्पाकवृक्ष आम्रवृक्ष के सदृश होता है-"विस रुक्खो ति अम्बसदिसो किंपक्क रुक्खो" । प्रसन्नराघव के अनुसार किम्पाक
1. शालिग्रामनिघण्टुभूषणम् (बृहन्निघण्टुरत्नाकरान्तर्गतौ सप्तमाष्टम् भागो) पृ. 600:
कारस्करस्तु किपाको विषतिन्दुविषद्र मः ।
गरद्र मोरम्यफल: कुपाकः कालकूटकः । 2. शब्दकल्पद्र म (द्वि, भा.) पृ. 128 कुत्सितः पाक: परिणामो यस्य । 3. शतकत्रयादि सुभाषित संग्रह पृ. 38 श्लोक 96
तुलसी प्रज्ञा
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