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उत्तरज्झयणाणि के टीकाकार शान्तिसूरि के अनुसार भी किम्पाक एक वृक्ष विशेष है । प्रा. हेमचन्द्र को भी यही अर्थ अभिप्रेत है । श्रृंगार शतक का पूर्व उद्ध त श्लोक भी किंपाक को द्रुम ही कहता है ।
4. कोषकारों के अनुसार किम्पाक लता विशेष है। उन्होंने उसका दूसरा नाम महाकाल लता सूचित किया है।
व्यंगोक्ति में कथित हैं-ऐसा कौन पुरुष है जो महाकाल फल से ठगे जाने की तरह भीतर से मलिन, बाहर से आह्लादकारी खल शरीर द्वारा न ठगा गया हो ?
अन्तर्मलिन देहेन बाहिरालादकारिणा । महाकालफलेनेव क: खलेन न वञ्चितः।।
यहाँ महाकाल फल किंपाकफल का सूचक है।
महाकाल लता के पर्यायवाची नाम उरुकाल, काकमईक आदि बनाए गए हैं।
1. उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति पत्र 454 : किम्पाकोवृक्षविशेषस्तस्य फलान्यतीव सुस्वा
दानि । 2. नानार्थसंग्रह पृ. 78 : किम्पाकोवृक्ष भिद्यज्ञ । 3. (क) शब्दकल्पद्रुम (द्वि. भा.) पृ. 128 : किम्पाक : पु. महाकाल लता । इति
रत्नमाला । माकाल इति भाषा। (ख) नानार्थसंग्रह पृ. 78 : किम्पाको महाकालफलाज्ञयोः (मेदिनी) (ग) वाचस्पत्यम् (भा. 3) पृ. 2050 किम्पाक पु. (माखाल) महाकाल
(घ) वही (भा. 6) पृ. 4040 महाकाल लता भेदे। 4. शब्दकल्पद्रुम (तृ. भा.) पृ. 653 पर उद्ध तइत्युद्भटः । 5. (क) पर्यायमुक्तावली, 17 लतावर्ग पृ. 31 : उसकालो, महाकाल: किंपाकः
काकमकः (ख) पर्यायरत्नमाला पृ. 19 (ग) शब्दकल्पद्रुम (तु. भा.) पृ.653 । महाकाल: लताविशेषः। तत्पर्याय: उरुकाल: 2 किम्पाकः 3 काकमई कः । इति रत्नमाला । काकमई: 5 देवपालिका 6 दाला 7 दालिका 8 जलंग 9 घोषकाकृति 10. इति राजनिघण्टः ।
खं. ३ अ. २-३
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