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जिनके कर्म शुभ हैं, वह सुगति में और जिसके कर्म अशुभ हैं वह दुर्गति में जन्म लेता है। सदाचार से सुगति और दुराचार से दुर्गति प्राप्त होती है। इस प्रकार प्राणी यदि कर्मों के स्वभाव एवं परिणामों को जान जाए तो वह दुष्कर्मों को छोड़कर सुकर्म करने लग जाए । इस प्राचीन प्रसंग से स्पष्ट है कि बोद्ध धर्म में विश्व की व्यवस्था में कर्म को प्रधान माना गया है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के प्रति उत्तरदायी है । सदाचार का आचरण कर वह अपने पुरुषार्थ द्वारा शुभ कर्मों का अर्जन कर सकता है। व्यक्ति के पुरुषार्थ को महत्व देते हुए ही बुद्ध ने यह कहा है कि केवल मेरे उपदेशों के भरोसे मत रहना । स्वयं अप्रमादी होकर ध्यान करने से तथा धर्म का अभ्यास करने से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
पालि त्रिपिटक की कथाओं में भगवान बुद्ध के उपर्युक्त कर्म एवं पुरुषार्थ सम्बन्धी विचार यत्र-तत्र प्रतिबिम्बित हुए हैं । थेर एवं थेरीगाथा में पूर्व जन्मों के कर्मों को स्मरण कर सदाचरण में प्रवृत्त होने की बात कही गई हैं। थेरीगाथा में इसीदासी का पूर्व जन्म का वर्णन ध्यातव्य हैं । (गा. 400-447) धम्मपद में यही कहा गया है कि व्यक्ति आकाश, पर्वत, समुद्र आदि कहीं भी चला जाय, किन्तु अपने किये गए कर्मों के फल से नहीं बच सकता। यथा
न अन्तलिक्खे न समुद्दमझे
न पब्बतानं विवरं पविस्स । न विज्जति सो जगतिघादेसो
यत्थठितो मुञ्चेय्य पापकम्मा ।। 9-12 ॥ किन्तु इन कर्मफलों को जानकर निर्वाणप्राप्ति का सही मार्ग चुना जा सकता है। तृष्णा का क्षय कर व्यक्ति कर्मफल से मुक्त हो सकता है। तथागत तो केवल इतना मार्ग बतलाते हैं, पुरुषार्थ तो व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है ।
"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं अक्खातारो तथागता"-(धम्म० 20-4)।
पालि कथाओं में जातक साहित्य का प्रमुख स्थान है। जातक कथाओं में बोधिसत्व की पूर्वजन्मों की कथाएं हैं। किन्तु उनमें अनेक शाश्वत नीति के उपदेश हैं, जो व्यक्ति को सदाचार की ओर प्रेरित करते हैं। कई जातक कथाएं व्यक्ति के कर्मफलों को अभिव्यक्त करती हैं। माल से भरा हुआ जहाज समुद्र में डूब जाना किसी यक्षिणी के जाल में फंस जाना, अनेक तरह की शारीरिक यातनाएं सहना, दरिद्रता का दुख भोगना आदि अनेक आपत्तियाँ जातक कथाओं के पात्र कर्मों के विपाक के कारण भोगते हैं। किन्तु दूसरी ओर व्यक्ति के पुरुषार्थ को प्रेरित करने वाली कथाएं भी पाली साहित्य में बहुत हैं। वणिक् पुत्र की साहस भरी यात्राएं, संकटों में अडिग रहने की घटनाएं तथा परोपकार एवं करुणा से युक्त कार्यों का
ख. ३ अं. २-३
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