________________
पालि प्राकृत कथाओं में कर्म एवं पुरुषार्थ का अन्तर्द्वन्द्व
डा० प्रेम सुमन जैन
श्रमण-परम्परा में दार्शनिक सिद्धान्तों के प्रतिपादन एवं उनके प्रचार के दष्टान्तों व कथाओं के माध्यम को अपनाया गया है । बौद्ध धर्म के प्राचीन ग्रन्थों, त्रिपिटक आदि में तथा जैन आगमों में ऐसे कई दृष्टान्त व उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा कर्म सिद्धान्त को स्पष्ट किया गया है । स्वयं भगवान् बुद्ध व महावीर ने अनेक प्रश्नोत्तरों द्वारा व्यक्ति के कर्म एवं उनके अच्छे-बुरे फल-विपाक को समझाने का प्रयत्न किया है।
पालि साहित्य
मज्झिमनिकाय में एक सन्दर्भ है कि शुभ नामक माणवक ने भगवान बुद्ध से एक बार पूछा था कि हे गौतम ! मनुष्य में हीनता और प्रणीतता (उत्तमता) दिखाई देती है, इसका क्या हेतु हैं ? बुद्ध ने उत्तर दिया था कि हे माणवक ! प्राणी कर्मों के अधीन है । कर्म ही प्राणियों को हीनता और उत्तमता में विभक्त करता है ।।
* पूना विश्वविद्यालय, पूना में मार्च 77 में आयोजित सेमिनार में पडित
निबन्ध ।
१२४
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org