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________________ ही है । इसने किसी देश से सीख कर यहाँ प्रचार नहीं किया। इसलिए बेबर, ह्विटले व थीबो का यह कहना गलत है कि भारतीयों ने अन्य देशों से ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया है । इस प्रकार निस्सन्देह ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति भारत में हुई है और यह विश्व को भारत की एक मौलिक देन है। जबकि यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र की उत्पति भारत में ही हुई है तो अब यह भी ज्ञान करना जरूरी है कि भारतीय ज्योतिष के कितने अंग हैं व उसमें किन-किन बातों का समावेश है ? वेदों के छ: अंग माने गये हैं। उनमें शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द व ज्योतिष हैं। भारतीय ज्योतिष के मुख्य तीन भाग माने जाते हैं जो सिद्धान्त होरा और संहिता कहलाते हैं । आजकल तीन को बजाय पांच भाग भी माने जाने लगे हैं, भागों में प्रश्न व शकुन और उपरोक्त तीनों भाग भी जोड़ दिये गये हैं । इन पांचों भागों में ज्योतिषशास्त्र की सभी मुख्य-मुख्य बातें अन्तर्भुक्त हो जाती हैं । ___ जब हमें भारतीय ज्योतिष के भागों का ज्ञान हो जाता है तो हमें यह ज्ञात करना भी जरूरी है कि भारतीय ज्योतिष अन्य देशों के ज्योतिष से किस प्रकार भिन्न व मौलिक है ताकि जो विद्वान् यह कहते हैं कि भारतीय ज्योतिष पाश्चात्य ज्योतिष से सीखकर लाया गया है व उसकी नकल है, उसका सही मूल्यांकन हो सके। इस बात पर हम जब विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि अनेक विद्वान् यह मानते हैं कि भारतीय ज्योतिष पर टॉलमीय ज्योतिष का अत्यधिक प्रभाव है। इसलिए हम भारतीय व टॉलमीय ज्योतिष की मुख्य-मुख्य बातों की तुलना अगले पृष्ठों में कर रहे हैं ताकि वास्तविकता का ज्ञान हो सके। सर्व प्रथम हम भारत व टालमीय ज्योतिष के आधार पर उनके वर्षमान की तुलना करते हैं जिससे यह ज्ञात हो सके कि इन दोनों में कितनी भिन्नता है व कौन सा प्राचीन है । इसके लिए देखिए सारिणी नं-1 इस सारणी से ज्ञात होता है कि इन सब सिद्धान्तों के वर्षमान में सबसे कम वर्षमान रोमक सिद्धान्त का है । यह वर्षमान ग्रीक ज्योतिषी हिपार्कस के वर्षमान के समान है । टालमी ने हिपार्कस को आधार मानकर ही अपना वर्षमान निर्धारित किया है । यही कारण है कि उसका वर्षमान उपरोक्त सभी सिद्धान्तों के वर्षमान से कम है। खं. ३ अं. २-३ ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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