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________________ क्रम संख्या 1. पितामह सिद्धान्त वासिष्ठ सिद्धान्त पुलिश सिद्धान्त 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8' 9. सिद्धान्त का नाम सूर्य सिद्धान्त रोमक सिद्धान्त सारणी नं० 133 ११६ राज मृगाङ्क, करण कुलूहल आदि सिद्धान्त टालमीय सिद्धान्त 365 आधुनिक सूर्य, वसिष्ठ, शाकल्य 365 रोमक और सोम सिद्धान्त द्वितीय आर्य सिद्धान्त दिन घटी 365 366 365 365 Jain Education International 365 365 365 21 25 -- 15 15 14 15 वर्षमान पल 15 15 15 30 31 48 0 31 31 31 विशेष विपल प्रति विवरण विपल 24 For Private & Personal Use Only 30 31 24 17 17 ।। ।। ল 31 उपरोक्त सारणी से यह स्पष्ट है कि यदि भारतीयों ने स्वतंत्र रूप से स्वयं मान नहीं बनाये होते तो भारत के वर्षमान भी टालमी के वर्षमान से मिलतेजुलते होते व अधिक अन्तर नहीं आता पर ऐसा हुआ नहीं है । इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय सिद्धान्त टालमी के सिद्धान्त से प्रभावित नहीं हैं एवं उनसे प्राचीन व मौलिक हैं । 6 17 (2) इतना ही नहीं जब हम कलियुगारम्भ कालीन और शाके 421 के आधुनिक यूरोपियन मान (केरोपन्तीय ग्रह साधन कोष्ठक) द्वारा लाये हुए टालमी कालीन (शाके 70, सन् 148 ई.) उच्च और पातों की तुलना करते हैं तो निम्न अन्तर दिखाई देता है (देखिए सारणी 2) 30 उपरोक्त सारणी से ज्ञात होता है कि टालमी का शुक्रोच्च बहुत ही अशुद्ध है और उसके अन्य उच्चों में भी अधिक अशुद्धि है । पात में भी काफी अशुद्धियां हैं। इतना ही नहीं टालमी का सूर्योच्च 65 अंश 30 कला है और टालमी कालीन (सन् 150 ई. के लगभग) वास्तविक सायन सूर्योच्च 71 अंश है। 65 अंश 30 कला अन्य किसी भी रीति से नहीं आता है । इससे यह सिद्ध है कि इन सिद्धान्तों में कोई 33. भारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिष, 1975 पृ. 220 279 ( मूल लेखक श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित हैं ।) तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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