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________________ में स्वीकार किया है । अभी जो साहित्य उपलब्ध है वह भी उसका बहुत ही कम भाग है ।19 (ii) जो भी साहित्य उपलब्ध है वह भी धार्मिक ग्रंथों में ही उपलब्ध है, ज्योतिष की दृष्टि से अलग नहीं है। (iii) जो भी उपलब्ध सामग्री है उसे भी उपयुक्त महत्व नहीं दिया गया है । (iv) जो साहित्य है वह यदि किसी दूसरे देश के साहित्य से मिलता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी नकल की गई है । उसका अलग-अलग परिस्थितियों में भी आविष्कार हो सकता है । इस प्रकार पर्याप्त उपलब्ध साहित्य के अभाव में या दूसरे देश के समान साहित्य उपलब्ध होने से बेबर, हिटले व थीबो का यह कथन गलत सावित होता है कि भारतीयों ने ज्योतिष का ज्ञान अन्य देशों से सीखा है। इतना ही नहीं कई विद्वानों ने ज्योतिष की उत्पत्ति भारत में ही हुई मानी है और उन्होंने निम्न विचार इसकी पुष्टि में व्यक्त किये हैं : (v) अलबरूनी ने लिखा है कि "ज्योतिषशास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़ कर हैं । मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में अठारह अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं, जिनमें अन्तिम संख्या का नाम परार्द्ध बताया गया है । 21 (vi) प्रो० मैक्समूलर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारतीय आकाशमण्डल और नक्षत्र मण्डल आदि के बारे में, अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं । मूल प्राविकर्ता वे ही इन वस्तुओं के हैं ।22 (vii) फ्रान्सीसी पर्यटक फाक्वीस वनियर ने लिखा है कि "भारतीय अपनी गणना द्वारा चन्द्र और सूर्य ग्रहण की बिल्कुल ठीक भविष्यवाणी करते हैं। इनका ज्योतिषज्ञान प्राचीन और मौलिक है 123 (viii) फ्रान्सीसी यात्री टरवीनियर ने कहा है कि भारतीय ज्योतिषज्ञान में प्राचीनकाल से ही अतीव निपुण हैं । (ix) कॉन्ट अॉर्मस्टर्जन ने लिखा है कि "वेली द्वारा किये गये गणित से यह 19. Neugebauer, pro, Exact Sciences in Antiqtity, 1951, p. 56 20. Kane, P.V., 1958) op. cit, p. 480 21. Shastri, N.C. (1973) pp. 11-12 22, Ibid pp. 11-12 23. Ibid, pp. 11-12. 24. Ibid, pp. 11-12 खं. ३ अं. २-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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