________________
ए भगवती सूत्र सदाइ ख्यातं, लक्षण पिण रूड़ा अवदातं । गज पक्ष पिण प्रसिद्ध कहिय, रूडा रूडा लक्षण लहियै ॥ 7 ॥ एह भगवती देव-अधिष्ठत, ते गणधर श्रुतदेवत सेवित । गज पक्षे देवांशी कहियै, सुर वर पिण तसु सेव सलहिय ॥ 8 ॥ सुवर्ण मंडित समय उद्देश, वर अक्षर सोभित सुविशेष । जय-कुजर गज पक्ष जाणी, सिरोभाग अति प्रशस्त माणी ॥9॥ अद्भुत चरित्र नानाविधि लेह, छत्तीस सहस्र प्रश्न श्रुतदेह । चिहूं अनुयोग रूप चिहुं चरणं, कहियै छै तास विवरणं ॥ 10 ।।
गीतक छंद
वर प्रथम जे द्रव्यानुयोगज,
द्वितीय अङ्गादिक विष। फुन चरण न करणानुयोगज,
प्रथम अङ्गादिक अखे ॥11॥ गणितानुयोगज तेह,
___चंदपण्णत्ति प्रमुख विष वही। फुन तुर्य धर्मकथानुयोगज,
सूत्र ज्ञातादिक सहि ।।12।। अनुयोग ते बाख्यान ए चिहुँ, पंचमांग विषै
कंह्या। पद च्यार जय-कुजर तण वर,
सषर ही शोभे रह्या ॥13॥ ज्ञान चरित्र रूप बे नयनं, जय-कुजर थी चित्त लहै चयनं । द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिकही, बे नय रूप दंत मूशलही ।।14। वर निश्चय नय फुन व्यवहारं, बे नय रूप सषर सुविचारं । उन्नत उच्च कुभस्थल दोय, जय-कुजर गज नै अवलोय ।।15।। प्रारम्भ वचन तणी रचना जे, वर महा संडादंड बिराजे । निगमन वचन जिको संहरीय, तेह अतुच्छ पुच्छ उच्चरीय ॥16॥ कालादिक जे अष्ट प्रकार, प्रवचन समय तणा उपचार। प्राख्या ज्ञान तणा आचार, एह रूप परिकर परिवारम् ॥17॥
1. कालादिरष्टविधो ज्ञानाचार प्राह च :
काले विणए बहुमाणे उवहाणे चेव तह अनिण्हवणे । वंजण अत्थ तदुभए अट्ठविहो नाणमायारो त्ति ।।
१०६
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org