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________________ उत्सर्ग फुन अपवाद विचारं, सूत्र विष विहु आज्ञा सारं । सम्यक् प्रकार उच्छलता सोय, वीर घंटा मोटी ए दोय ।।18॥ यशनु पडह तास पडछंद, तेणे करि पुर्या सुखकं ।। एहवी जे दिशि नौ चक्रवाल, जय-कुजर गज नै सुविशाल ।।19 ।। स्यादवाद कहितां अवलोय, स्यादस्ति स्यात् नास्ति जोय । ए जिनवाणी रूप प्रसिद्धो, निर्मल अंकुश करि वश्य कीधो ।।20। विविध हेतु ते शस्त्र विख्यात, रिपु दल अविरति नै मिथ्यात । तेह दलणनै अर्थ समाज, प्रेर्यो महावीर महाराज ॥2111 सेन्यापति छै तेह समान, गच्छनायक निज बुद्धि करि जान । जय-कुजर गज नै सझ कीधौ, अथवा रचियो तेण प्रसिद्धो ।।2211 प्रवर जोध मुनि पीड रहीतं, आरोहणनै अर्थ वदीतं । बांछित वस्तु साधन समर्थ, नाड्यां अर्थ रूप ए अवितथं ।।23।। अन्य वलि जीवाभिगमादि, विवरण विविध रूप संवादि । दोरां ना जे लेश अभूल, तास मिलाप करी महाझूल ।।24।। एहवू जे वर महा उपगारी, हस्ति नु नायक हितकारी। तास हुकम थी रचना चारु, सुधर्म स्वाम रची ए वारु ॥25॥ . तास अनुसार अम्हे पिण एह, जोड़ रूप करीय गुण गेह। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रशादं, जय जश पभणे धर अह्लादं ।।26।। खं. ३ अं. २-३ १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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