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________________ रुक्मिणी, गान्धारी, शैव्या, हैमवती तथा जाम्बवती देवी ने भी पतिलोक की प्राप्ति के लिए अग्नि में प्रवेश किया था। 161 13. वैराग्य और आत्महत्या __ वैराग्य अवस्था में तपस्या और अनशन द्वारा देह-त्याग करने का विधान रहा है। (1) महाभारत अनुशासनपर्व 125/63/64। में कहा है-“ जो वेदान्त का ज्ञाता द्विज इस जीवन को नाशवान् समझ कर देवताओं का पूजन तथा मुनियों को प्रणाम करके हिमवान् पर्वत पर विधिपूर्वक अनशन के द्वारा अपने प्राणों को त्याग देता है, वह सिद्ध हो कर सनातन ब्रह मलोक को जाता है।" 162 (2) निराहारव्रत कर देह-त्याग का एक वर्णन महाभारत आदिपर्व 75/58-591 में इस प्रकार मिलता है "पुरु का राज्याभिषेक करने के पश्चात् राजा ययाति ने अपनी पत्नियों के साथ भृगुतग पर्वत पर जाकर सत्कर्मों का अनुष्ठान करते हुए वहां बड़ी भारी तपस्या की। इस प्रकार दीर्घकाल व्यतीत होने के बाद स्त्रियों सहित निराहार व्रत करके उन्होंने स्वर्गलोक प्राप्त किया ।" 163 (3) सत्यवती के देह-त्याग का वर्णन आदिपर्व 127/12, 13/ में इस प्रकार है _ 'पाण्डु के देहान्त के बाद सत्यवती अपनी दोनों पतोहुओं को साथ ले वन को चली गयी । वन में अंत्यन्त घोर तपस्या कर के शरीर त्याग कर अभीष्ट गति को प्राप्त हो गई।"164 161. महाभारत मौसलपर्व (7/73) रुक्मिणो त्वथ गान्धारी शैव्या हैमवतीत्यपि । देवी जाम्बवती चैव विविशुर्जातवेदसम् ।। 162. शरीरमुत्सृजेत् तत्र विधिपूर्वमनाशके। अध्रुवं जीवितं ज्ञात्वा यो वै वेदान्तगो द्विजः ॥ अभ्यर्य देवतास्तत्र नमस्कृत्य मुनीन् तथा। तत: सिद्धो दिवं गच्छेद् ब्रह्मलोकं सनातनम् ।। 163. तत: स नृपशार्दूल पुरु राज्येऽभिषिच्य च । तत: सुचारितं कृत्वा भृगुतं गे महातपाः ।। कालेन महता पश्चात् कालधर्ममुपेयिवान् । कारयित्वा त्वनशनं सदार: स्वर्गमाप्तवान् । 164. वनं ययौ सत्यवती स्नुषाभ्यां सह भारत ॥ ता: सुघोरं तपस्तप्त्वा देव्यो भरतसत्तम । देहं त्यक्त्वा महाराज गतिमिष्टां ययुस्तदा ॥ १०० तुलसी प्रज्ञा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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