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14. प्रात्माघात और फल
आत्मघात के फल के विषय में निम्न मन्तव्य द्रष्टव्य हैं :
(1) वसिष्ठ कहते हैं : “पर्वत से गिरकर प्राण-त्याग करने से राज्य-लाभ एवं अनशन कर प्राण-त्याग करने से स्वर्ग-लाभ होता है । 165
(2) व्यास कहते हैं :' जल में डूबकर प्राण-त्याग करनेवाला सात हजार वर्षों तक, अग्नि में प्रविष्ट हो प्राण त्यागनेवाला चौदह हजार वषों तक फल प्राप्त करता है । अनशन कर प्राणत्याग करनेवाले के लिए तो फल प्राप्ति के वर्षों की संख्या की सीमा ही नहीं हैं।' 166
(3) महाभारत अनुशासनपर्व में कहा है :
(क) “जो आमरण अनशन का व्रत ले कर बैठता है, उसके लिए सर्वत्र सुख बताया गया है।" 167
(ख) "अनशन से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। " 168
15. कलियुग और मरण
___ आदित्य पुराण में जो कलिवर्ण्य दिए हैं उनमें महाप्रस्थानगमन 100 और वृद्धादि का पर्वत से गिर कर अथवा अग्नि में गिरकर मरण करने का भी वर्णन आया है। 170
वृहन्नारदीय पुराण में कहा है : “मनीषियों ने कहा कि कलियुग में महाप्रस्थानगमन आदि धर्म वजित हैं।" 171
यह सोचा जाता है कि कलियुग में वृद्धादि का पर्वत से अथवा अग्नि में गिर कर मरने का जो निषेध है वह जानबूझ कर किए हुए महापातकों के प्रायश्चित्त के
165. भृगुप्रपतनाद्राज्यं नाकपृष्ठमनाशकात् । 166. जले सप्त सहस्राणि चतुर्दश हुताशने । अनाशकस्य राजेन्द्र फलसंख्या न विद्यते ।।
(याज्ञ० 3/6 की टीका में अपरार्क द्वारा उद्ध त) 167. महाभारत अनुशासनपर्व (7/16) - प्रायोपवेशिनो राजन् सर्वत्र सुखमुच्यते । 168. महाभारत अनुशासनपर्व (7/18)
नाकपृष्ठमनाशके 169. महाप्रस्थानगमनं गोसंज्ञपिश्च गोसवे (1/9) 170. भृग्वग्निपतनाद्य श्च वृद्धादि मरणं तथा (1/35) 171. महाप्रस्थानगमनं गोमेघश्च तथा मखः ।
एतान् धर्मान् कलियुगे वानाहुर्मनीषिणः ।
खं. ३ अं. २-३
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