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कि इसे रावण को नहीं देना चाहिए; क्योंकि वह अनेक युवतियों का स्वामी है । यदि इन्द्रजित् को दी जायगी तो मेघवाहन बिगड़ उठेगा और मेघवाहन को दी जाती है तो इन्द्रजित् रुष्ट होगा । अत: वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के विद्याधर राजा हरिणाम के विद्युत्प्रभ नामक पुत्र को यह कन्या दी जानी चाहिए । यह सुन सन्देहपारंग नामक मंत्री ने कहा कि यह विद्युत्कुमार मोक्षपथ पर प्रयाण करने वाला है। एक मंत्री ने कहा कि आदित्यपुर में प्रहलाद नामक एक विद्याधर है उसके पवनञ्जय नामक यशस्वी पुत्र को यह कन्या दी जाय। एक बार फाल्गुन मास में प्रहलाद नन्दीश्वर द्वीप गया । वहां पर उसकी प्रहलाद से भेंट हुई । विचारविमर्ष के बाद प्रहलाद ने अपने पुत्र के साथ अजना सुन्दरी के विवाह की स्वीकृति दे दी। दोनों का विवाह तीसरे दिन मानसरोवर के तट पर करने का निश्चय हो गया। तीन दिन में विवाह का निश्चय होने पर भी कन्या दर्शन के अभिलाषी पवनञ्जय के लिए वे दिन बिताने असह्य हो गए वह काम से व्याकुल हो गया । उसने अपना अभिप्राय अपने मित्र प्रहसित पर प्रकट किया । प्रहसित ने कहा कि आज ही अंजनासुन्दरी के दर्शन कराता हूं । वे दोनों आकाश मार्ग से गए और महल की सातवीं मंजिल में प्रवेश करके उन्होंने अजनासुन्दरी को देखा । उसके रूप को देखकर पवनञ्जय विस्मित हो गया । इसी बीच कन्या की वसन्ततिलका नामक सखी ने कहा कि तू धन्य है जो कीर्तिशाली पवनवेग को दी गई है । वहां उपस्थित दूसरी सखी मिश्रकेशी ने कहा कि तू मूढ
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है जो गुणों के निधान, धीर और चरम शरीरी विधुत्प्रभ को छोड़कर पवनञ्जय की प्रशसा करती है । इस पर वसन्ततिलका ने कहा कि वह अल्पायु है । तब मिश्रकेशी ने कहा कि विद्युत्प्रभ के साथ एक दिन का प्रेम भी अच्छा है किन्तु कुपुरुष के साथ दीर्घकाल तक हो तो वह अच्छा नहीं है । यह सुनकर पवनगति घर से निकल गया और सबेरे नगर की ओर जाने लगा । प्रहलाद ने उसे समझाया । गुरुजन के आदेश का उल्लंघन कर पाने के कारण उसने विवाह करना स्वीकार कर लिय । किन्तु मन में सोच लिया कि पाणिग्रहण करके परित्याग कर दूंगा । विवाह हो गया | पवनञ्जय ने निर्दोष अजना का परित्याग कर दिया । अंजना ने बहुत अनुनय विनय की किन्तु वह न माना । इसी बीच रावण और वरुण में युद्ध हुआ जिसमें पवनञ्जय रावरण की सहायतार्थ गया । सध्या के समय भवन के गवाक्ष में से उसने सुन्दर सरोवर देखा । वहां प्रिय के विरह से दुःखी चकवी को देखकर पवनंजय को अजना की याद आई । वह अपने कुकृत्य पर पश्चाताप करने लगा। अपने मित्र प्रहसित साथ उसी रात वह अंजना सुन्दरी के महल में गुप्त रूप से आया और अंजना गर्भवती हो गई। जब पवनञ्जय जाने लगा तो अजना ने अपनी आशंका व्यक्त की कि कहीं लोग मुझे दुराचारिणी न समझें अतः माता पिता वगैरह से मिलकर जाओ इस पर पवनवेग ने अपने नाम से अंकित अंगूठी उसे दे दी और पुनः अपने पड़ाव पर पहुंच गया। इधर सास ने अंजना को दुश्चरित्र समझ उसे सखी के साथ महेन्द्रनगर
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तुलसी प्रज्ञा- ३
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