SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भेज दिया । महेन्द्रनगर से राजा महेन्द्र ने भी उसे बाहर निकलवा दिया। अंजना अपनी सखी के साथ वनों में भ्रमण करने लगी। वहां उसकी अमितगति मुनिवर से भेंट हुई। मुनि ने उसका पूर्वभव सुनाया कि उसने पूर्वभव में जिनप्रतिमा को उठाकर घर से बाहर रख दिया था, उसी कर्म का यह परिणाम है । समय आने पर अंजना ने पुत्र प्रसव किया। एक बार जब अंजना विलाप कर रही थी तब उसका विलाप सुन एक विद्याधर आकाशमार्ग से नीचे आया वह उसका । मामा प्रतिसूर्यक था । प्रतिसूर्यक उसे अपने घर ले चला। विमान में किंकनी के समूह को देखकर बालक उछला और पहाड़ की शिला पर जा गिरा । अंजना प्रतिसूर्य के साथ नीचे उतरी और शिला पर अक्षत शरीर वाले बालक को आन्नद-विभोर हो उठा लिया । पवनंजय जब विजय प्राप्त कर वापिस लौटा तो अंजना को न देख मित्र से पूछकर वह महेन्द्रनगर गया। वहां भी अंजना को न पा वह विरहाग्नि से जलता हुआ इधर-उधर भटकने लगा । उसने मित्र को आदित्यपुर भेज दिया और स्वय मरने का निश्चय कर लिया । प्रह्लाद ने प्रतिसूर्य से समाचार सुनकर जगह जगह अपने दूत भेजे 1 प्रतिसूर्यक के द्वारा अंजना का वृत्तान्त ज्ञात हुआ । वे सब पवनजय के पास गए । अन्त में पवनंजय और अंजना का मिलाप हुआ । उनका पुत्र जिसका नाम श्रीशैल अथवा हनुमान रखा था, दिनोंदिन बढ़ने लगा । अभिज्ञान शाकुन्तल और पउमचरिय की कथा का सूक्ष्मता से अध्ययन करने तुलसी प्रज्ञा- ३ Jain Education International पर बहुत कुछ साम्य दृष्टिगोचर होता है । १. दुष्यन्त अकेला आश्रम में पहुँचता है । पवनंजय अपने प्रहसित मित्र के साथ अंजना के भवन में पहुँचता है । शाकुन्तल में दुष्यन्त का सखाविदूषक बाद में मिल जाता है, जिसे वह सारी आपबीती सुनाता है । २. दोनों कथाओं में नायिका और उसकी दो सखियों की आपस में बातचीत होती है और नायक उसे छिपकर सुनता है । शाकुन्तल में अकेला राजा छिपकर बातें सुनता है । पउमचरिय में पवनंजय के साथ उसका मित्र प्रहसित भी है । पउमचरिय में नायिका के गुणों के कारण बिना देखे ही नायक उसे देखने या उससे मिलने के लिए उत्कण्ठित हो जाता है। शाकुन्तल में राजा जब शकुन्तला को देखता है तब वह उसके प्रति आकर्षित हो जाता है और उसे पाने की स्पृहा करता है । शाकुन्तल में नायिका मुग्धा, लज्जाशील, मितभाषी और मनोहर है । ठीक यही बात पउमचरिय की अंजना में दृष्टिगोचर होती है । दोनों कथाओं में नायक नायिका को अपने नाम से अङ्कित अंगूठी अभिज्ञान के रूप में देता है । शाकुन्तल में नायक और नायिका दोनों के मिलने में दुर्वासा का शाप बाधक है। जैन धर्म में इस प्रकार के शाप को कोई स्थान नहीं है अतः पउमचरिय नायिका से नायक का मिलन न होने का कर्म है । यह कारण पूर्वजन्म का कर्म का बन्ध जनप्रतिमा को बाहर रखने से हुआ था । For Private & Personal Use Only ३७ www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy