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________________ तेरा पुत्र है तू इसकी रक्षा कर । पुरोहित और मन्त्रियों की सम्मति से राजा ने उन्हें स्वीकार कर लिया। राजा ने लोगों से कहा कि मुझे सब वृत्तान्त स्मरण था किन्तु शकुन्तला की शुद्धि के लिए मैंने ऐसा किया। __ अभिज्ञान शाकुन्तल में यह कथा कुछ परिवर्तन के साथ मिलती है. जो इस प्रकार है : राजा अकेला ही आश्रम में पहुँचा । सेना पीछे छूट गई । मूलकथा में वह सीधे आश्रम में पहुँचता है और वहां शकुन्तला उसका सत्कार करती है। शाकुन्तल में राजा शकुन्तला और उसकी सखी प्रियंवदा और अनसूया को वृक्षसिंचन करते हुए देखता है। वहां शकुन्तला को देखकर वह उसके प्रति अनुरक्त होता है और उन सबकी बातें वह पेड़ की ओट से सुनने लगता है । मूलकथा में सेना आश्रम के बाहर लम्बे समय तक रुकी रहती है । शाकुन्तल में पीछे छूटी हुई सेना राजा को ढूढ़ते यहां आती है। मूलकथा में स्वयं शकुन्तला अनेक बातों का उत्तर देती है। शाकुन्तल में सखियां उत्तर देती हैं और शकुन्तला को यहां मुग्धा, लज्जाशील, मितभाषी और मनोहर चित्रित किया गया है। मूलकथा में विवाह के लिए पुत्र को राज्य देने की शर्त है शाकुन्तल में ऐसी कोई शर्त नहीं। यहां राजा जाने से पूर्व स्मृतिचिन्ह स्वरूप शकुन्तला को अंगूठी दे जाता है। मूलकथा में अंगूठी की कथा का पूर्णतया अभाव है । शाकुन्तल में दुर्वासा ऋषि आते हैं, शकन्तला दुष्यन्त का स्मरण कर रही है । वह ऋषि के आगमन को नहीं जान पाती अतः वे शाप दे देते हैं । मूलकथा में शाप की कथा नहीं है । शाकुन्तल में कण्व ऋषि आते ही तपोबल से विवाह की सारी घटना जानकर तपस्वियों के साथ शकुन्तला को पतिगृह भेज देते हैं। महाभारत में जब पुत्र छः वर्ष का हो जाता है तब लोकापवाद के भय से मुनि शकुन्तला को पति गृह भेजते हैं । शाकुन्तल में शकुन्तला के साथ शाङ्गरव, शारद्वत और गौतमी जाते हैं। महाभारत में गौतमी नहीं जाती । शाकुन्तल में राजा शाप के कारण शकुन्तला को नहीं पहचान पाता । महाभारत में राजा विवाह की सारी बात स्मरण रखते हुए भी शकुन्तला को अस्वीकार कर देता है । शाकुन्तल में धीवर को अंगूठी मिलना, अंगूठी मिलने पर शाप की समाप्ति होने से राजा का दु:खी होना, धनमित्र व्यापारी के मरने का समाचार और अपत्रता के कारण राजा का चिंतित होना, राजा का राक्षसों के वध के लिए जाना आदि घटनायें मिलती हैं, जो महाभारत में प्राप्त नहीं होती। अभिज्ञान शाकुन्तल से ही मिलती जुलती अंजना पवनंजय कथा विमलसूरि के पउमचरिय में मिलती है । यह कथा इस प्रकार है भारतवर्ष के छोर पर दक्षिण दिशा में सागर के समीप दन्ती नामका पर्वत है। वहां राजा महेन्द्र ने महेन्द्रनगर बसाया। गजा के एक अंजनासुन्दरी नामक कन्या थी। जब वह कन्या यौवनवनी हई तो उसके विवाह के विषय में राजा ने मन्त्रियों से सलाह की कि यह कन्या गवण को दी जाय अथवा रावण के मेघवाहन या इन्द्रजित आदि पुत्रों को दी जाय । यह सुनकर सुमति मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में वह! तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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