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पउमचरिय की अंजना पवनंजय कथा तथा अभिज्ञान शाकुन्तल का तुलनात्मक अध्ययन
डा. रमेशचन्द जैन
कवि कुलगुरु कालिदास का अभिज्ञान शाकुन्तल नाटक संस्कृत नाटकों में सर्वोपरि है । इसका मूलस्रोत महाभारत की दुष्यन्त एवं शकुन्तला की कथा है। कालिदास ने इस कथा को नाटकीय ढंग से सजाया है । नाटकीय व्यापारों को और अधिक गति देकर प्रभावोत्पादक बनाने हेतु कवि ने मूलकथा में बहुत से परिवर्तन किए हैं। महाभारत की मूलकथा के अनुसार एक बार चन्द्रवंशी राजा दुष्यन्त शिकार खेलता हुआ कण्व के आश्रम के पास पहुँचा । वहां अपनी सेना को रोककर वह कण्व ऋषि के दर्शनार्थ आश्रम में गया । ऋषि फल लाने के लिए वन में गये हुए थे। राजा का स्वागत कण्व की धर्मपुत्री शकुन्तला ने किया। राजा उस पर अनुरक्त हो गया और उसके सामने गान्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखा।
शकुन्तला ने इस शर्त पर विवाह किया कि उसका पुत्र ही युवराज और राज्य का उत्तराधिकारी होगा। राजा ने वचन देकर उसके साथ गान्धर्व विवाह किया । कुछ समय वहां रहकर वह चला गया और शकुन्तला को बाद में बुलाने का वचन देकर वह राजधानी लौट गया । बाद में ऋषि के क्रद्ध होने के भय से उसने सेना नहीं भेजी। महर्षि जब आश्रम में आए तो तपोबल से सारी घटना जानकर उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी। आश्रम में शकुन्तला के पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम सर्वदमन रखा । पुत्र जब छः वर्ष का हो गया तो ऋषि ने शकुन्तला को तपस्वियों के साथ राजा के पास भेजा । राजा ने सब कुछ जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं किया। शकुन्तला जाने लगी। इसी समय आकाशवाणी हुई कि शकुन्तला तेरी पत्नी है और यह बालक
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तुलसी प्रज्ञा-३
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