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उसके आस-पास के शहर सांगली, इचलकांजी और कोल्हापुर भी क्रमशः हल्दी, हेण्डलूम ( हाथकरघा ) और गुड़ आदि वस्तुओं के केन्द्र हैं । उसी का दिग्दर्शन कराने वाले पद्य हैं
"सुन्दर अति सरसब्ज इलाको, कदम-कदम पर शिक्षण केन्द्र | बड़ा बड़ा व्यापारिक सेंटर जन-जन बोले जय - जैनेन्द्र || हलद केन्द्र है 'सांगली' 'इचलकरंजी' लूम | तम्बाकू 'जैसिंह' तरुण 'कोल्हापुर' गुड़ धूम ॥"
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यात्रा के दौरान आचार्य श्री एक 'कागल' नामक गांव के प्राचीन महल में ठहरे । राजस्थानी भाषा में 'कागल' कागज को कहते हैं । इसको आलंकारिक रूप देते हुए आपने लिखा है-"लिख-पढ़ को लख्यो कागळ आज
तलक्क ।
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पर कागज रं महल पर छायो अभिनव छक्क ||' 'चिदम्बर' शहर किसी समय में जैनों का गढ़ था । वहां का ग्रंथ भण्डार देखकर सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है, पर आज वह जीर्ण-शीर्ण और अव्यवस्थित अवस्था है । उस पर आचार्य श्री ने लिखा है"जैन ग्रन्थ भण्डार वर देख दुर्दशा की । 'चिदम्बर' चेतन हृदय होण लग्यो वीदी ।। " २८ तमिलनाडु प्रान्त प्राकृतिक दृष्टि से अति रमणीय है पर वहां के निवासियों का रहन-सहन तो वैसा ही है
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"खेत-खेत मैं देत सा जाबक नंग-धडंग | खड़ा मस्त निज किसब मैं मानव रंग
तुलसी प्रज्ञा- ३
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विरंग ॥
गन्ना चावळ री धणी ने भरा निवाण । तमिलनाड यात्रा तणा ऐ देखो अह
।। "२६
नाण
'केरल' छोटा सा प्रदेश है। वहां पर क्रिश्चियनों और कम्युनिष्टों का बाहुल्य हैं। प्रकृति की उस पर पूर्ण कृपा रही है | आचार्य श्री के शब्दों में सारा राज्य एक उपवन जैसा है । आपने नहीं देखा है तो इन पद्यों को पढ़ लीजिए"कम्युनिष्ट अरु क्रिश्चियन, काजू, कन्द, कटेल |
नालिकेर, कालीमिरच, केरल रेलंपेल ॥ रंभा, रब्बड़, आम, अनारस वड़, पीपड़, बादाम |
ताड़, सुपारी किते नये तरू नहीं जानें हम नाम || सारो राज्य खिल्यो उपवन सो, पर नहीं विहग विशेष । सुघड़ सभ्यता और स्वच्छता केरल कांत प्रदेश || ३० इसी क्रम में लगते हाथ नर लोक का नंदनवन नील गिरी - उटी ( उटकमंड) का भी अवलोकन कर लीजिए
" ताड़ नारियल कदली वन-वन अनगित वृक्ष सुपारी के । लूंग जायफल, और जैवंत्री पेड़ हाट व्यापारी के ॥ आम, विजोरा, काफी, नीलगिरी के ऊचे झाड़ खड़े । कितने चढ़े जिधर देखो ऊंचे के ऊचे पहाड़ खड़े ।। सिमला रहा सुदूर दार्जलिंग देखा नहीं । 'नीलगिरि' 'कुन्नूर' नंदनवन नर लोक का ऊंचाई आसमान साढ़ी सात हजार फिट 1 सिनरी आलीशान निरखि गरिमा नील
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