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________________ प्रतिपाद्य हैं। आख्यान वर्ग के अन्तर्गत उल्लिखित प्रायः आस्यानों की रचना सं. १९६६ से २००१ के बीच हुई है। समयाभाव के कारण आचार्य श्री ने इनका पुन- निरीक्षण नहीं किया है अतः संभव है वैसा होने पर इनकी पद्य संख्या और बढ़ जाएगी। (३) शिक्षा (१) श्री कालू उपदेश वाटिका शिक्षा वर्ग के अन्तर्गत आने वाली यह कृति एक मंगलद्वार, चार प्रवेश और १४५ ढालों में संदृब्ध है। इसमें १०१४ पद्य हैं। इसकी रचना का प्रारम्भ सं. २००१ लाडनू में तथा पूर्ति २०१५ भाद्रव शुक्ला ६ कानपुर में हुई है । यह कृति आधुनिक ढग से संपादित होकर सन् १९६१ में 'आत्माराम एण्ड सन्स' देहली से प्रकाशित हो चुकी है । अत: विशेष जानकारी के लिए वह पुस्तक दृष्टव्य है। (४) पदयात्रा (१) महाराष्ट्र-यात्रा पदयात्रा वर्ग में इन दोनों कृतियों को लिया जा सकता है। अंतरिक्ष-यात्रा के इस युग में पदयात्रा की बात कुछ अटपटी सी लगती है। पर जन-संपर्क की दृष्टि से वह बहुत महत्त्वपूर्ण है । गांवों और शहरों में हर प्रकार के व्यक्तियों तक पहुं. चने के लिए एकमात्र सफल उपाय यही हो सकता है। इससे विभिन्न संस्कृतियों, रीतिरिवाजों आदि का समुचित अध्ययन हो जाता है। इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने अनेक लम्बी-लम्बी यात्राएं की हैं । उनमें से कुछ यात्राओं का पद्यों में संकलन इतिहास - सुरक्षा की दृष्टि से नया उपक्रम है । सं. २०११ फाल्गुन मास में महाराष्ट्र परिभ्रमण के समय यह कार्य प्रारम्भ हुआ । कुल ८३ पद्य बने फिर अन्य कार्यों में व्यस्त होने से वह क्रम टूट गया फलत: महाराष्ट्र यात्रा का विवरण इस कृति में अधूरा है । (२) दक्षिण यात्रा-दक्षिण यात्रा के लगभग ७२५ पद्य हैं । इसे चार चरणों में विभक्त किया जा सकता है - प्रथम चरण - आषाढ़ा से अहमदाबाद द्वितीय चरण-- अहमदाबाद से मद्रास तृतीय चरण-मद्रास से बैगलोर चतुर्थ चरण-बैंगलोर से रायपुर दोनों कृतियों में यात्रा के प्रसंग में जिन जिन ग्रामों में परिभ्रमण हुआ, उन ग्रामों के दर्शनीय-स्थल प्राकृतिक सौंदर्य, विशेष संस्मरण और नई घटनाओं को नवनीत के रूप में प्रस्तुत किया गया है । उदाहरण के लिए ऐतिहामिक क्षोत्र 'हम्पी' को लीजिए जिसे कभी किष्किन्धा नाम से पहचाना जाता था । आचार्यश्री ने उसका परिचय यों दिया है - "हम्पी रो इतिहास खंड-खंड में खंडहर । खडहरां में खास वास्तु शिल्प विस्मय जनक । ऊपर अणघड टोळ अड्या-पड्या अणमाप का। नीचे ठण्डी ठोड़ बैठया पथ श्रम बीसर ।। प्रस्तर क्रिया कमाल कीन्हीं हद कारीगरां । (पर) मुगलकाल भूचाल मैं सब क्षत विक्षत हुआ ।"२५ तम्बाकू का मुख्य केन्द्र जयसिंहपुर (महाराष्ट्र) का इलाका व्यापारिक, शैक्षणिक आदि अनेक दृष्टियों से समृद्ध है । २६ . तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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