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________________ शान्त नहीं हुई तब उसने धर्म की शरण ली और सहसा वह स्वस्थ हो गया । यही युवक आगे चलकर अनाथी मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ । सात ढाळों में रचित इस आख्यान के १०४ पद्य हैं । (८) विजय-विजया ब्रह्मचर्य का अलौकिक उदाहरण प्रस्तुत करने वाले इस आख्यान की २ ढालों में कुल २२ पद्य हैं । सार रूप में कुछ पद्य पढ़ लीजिए - "सब संयोग अवस्था योवन, कुसुम बिच्छ्या सुख शय्या | भर तूफान महान भंवर विच मानो नहि डोली नैय्या ॥ पावक पर मक्खन धन रहियो नहि बहियो जल ढाल सही । स्थूलभद्र नी ख्यात भ्रात ! अहिं वाह-वाह विजया - विजय लही । २४ (६) बाहुबलि सम्राट भरत को भी भुजबल से विचलित करने वाले बाहुबलि अपने मन को नहीं मना सके । फलतः बारह वर्ष की कठोर तपश्चर्या के बाद भी केवल ज्ञान नहीं हुआ । आखिर ब्राह्मी सुन्दरी के संगीत से प्रतिबद्ध होकर सिद्ध बने । इन्हीं रहस्यों को प्रकट करने वाले इस आख्यान में ७ ढालें और ६८ पद्य हैं । (१०) सुदर्शन अर्जुन माली जैसा महान हिंसक अहिंसक बन गया । यह प्रभाव था दृढ़धर्मी सुदर्शन के शौर्य का । उसका दिग्दर्शन कराने वाले इस आख्यान में ३ ढालें और ३६ पद्य हैं । (११) देवकी ४ ढाल और ३२ पद्यों में रचित इस तुलसी प्रज्ञा- ३ Jain Education International आख्यान में श्रीकृष्ण की मां देवकी और उनके ६ भाइयों का रोचक विवरण है । (१२) सौदास व्यसनी और जिह्वा के लोलुप व्यक्ति अपने हिताहित को भूल जाते हैं। इसी भावना को स्पष्ट करने वाले इस आख्यान में ३ ढाल और ४५ १द्य हैं । (१३) वज्रकरण इस आख्यान में २ ढालें तथा २३ पद्य हैं। इसका प्रतिपाद्य है- प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन और शिकार वर्जन । (१४) भरत चक्रवर्ती इसकी ३ ढाल तथा २४ पद्य हैं । इसमें अनित्य भावना का महत्व प्रदर्शित किया गया है । (१५) नमि राजर्षि एकत्व भावना के उदाहरण रूप में यह आख्यान अलोकिक है । इसकी २ ढालों में कुल २४ पद्य हैं । (१६) सुकुमालिका स्वार्थी व्यक्ति के सामने सारे संबंध गोण हो जाते हैं । इसका स्फुट चित्र देखना हो तो इस आख्यान को पढ़ें। दो ढालों में गु ंफित इस कृति के ३० पद्य हैं । ( १७ ) कथा कल्प लता १८ । इसमें ६ लघु आख्यायिकाएं हैं(१) सुकोशल ढाल - १, पद्य १३ । ( २ ) समुद्रपाली - ढाल १, पद्य १८ । (३) श्रेणिक ढाल - १, पद्य ( ४ ) सुलसकुमार ढाल - १, १ १६ । (५) संत तुलसीदास ढाल - १, पद्य है । (६) संत नामदेव ढाल - १, पद्य ५ । सभी आख्यायिकाओं के अलग-अलग For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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