________________
मोसम-मोसम में लड़ालुम्ब, ब खेत खड्या
लहराव है, कोयलियां कूज कुहुक-कहुक, पथिकां रो
___ स्वागत गावं है। रुत-रुत री फसलां खूब फळं, भूमि भारी
उपजाऊ है, फळ रकम-रकम रा मधुर-मधुर मोसम री
मोज अमाऊ है । सरदी गरमी रो जोर नहीं, मझली सी
रुत हरदम बरते, लू धूप लागणं रो भय तो मेवाड़ रहयो
सरते-बरत ।"११ मेवाड़ी लोगों के खान-पान में जब मक्की और उड़द की प्रधानता रहती है, वे विविध प्रयोगों से उनके पदार्थ बनाकर खाते हैं। अब तक अनेक शब्दकोश प्रकाशित हो चुके हैं पर उनका विवरण उनमें शायद ही मिले ।
जाझरियो, झकोलवां - पूड़यां, डलाराब, फाडाराब, पलेव, काली रोटयां, डबोकल्यांरी कट्ठी, फळफळ, सेम, बरकरण। रो साग आदि वस्तुओं से परिचित होने के लिए इन पद्यों पर दृष्टि डालिए"जव मक्की रो जब खास खाण गेहूं री
भी अब कमी नहीं । उड़दां री दाल बाफला री, वा जोड़ी
किण नै गमी नहीं ।। भुजिया झकोळवा-पूड़यां रो जाझरिया रो
जद स्वाद जमैं । घी गल्या ढोकळा मकियां रा, लख मुख
रो पाणी नहीं थमैं ।।" । "डळाराव, फाड़ा री दूजी पतली बर्ण
पलेव काली रोटयां डबोकळांरी कढी फळफळ
साग टिमरू और कुमठिया बरकण विविध बधारै सार गोगुन्दा री
सीम मैं हो ॥"१२ राजस्थान के रेतीले प्रदेशों की उष्मा और लू से पीड़ित होकर बहुत से लोग मसूरी, नैनीताल और शिमला जैसे ठण्डे प्रदेशों में सैर करने के लिए जाते हैं पर उन्हें पता नहीं है कि उनके अपने ही राजस्थान में कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो उन स्थानों से कई दृष्टियों से अधिक रमणीय हैं। मंत्री मुनि की जन्म स्थली 'गोगुन्दा' की सीमा में प्रविष्ट होने पर आपको ऐसा ही अनुभव होगा। "कर गगन स्यू बाद पहाड़यां है पथरीली
पाथ, संकड़ी पगडण्डया मैं बहणों रहणों कर
स्थिर गात, सड़को पक्की री नहीं वक्की, मुश्किल मिल गडारें सारै गोगुन्दा री
सीम मैं हो सीम हो । ऊंडी पड़ी दराड़ा ऊपर लड़ालुम्ब है रूख, नीचे झुक जयणां स्यूटुरणों टळनो रस्त
झंगी झाइयां आवे आड्यां, डग-डग दृष्टि पसार, सारै गोगुन्दा री
सीग मैं हो सीम मैं ।। नीर बहै झर-झर झरणां रो, करुणां रो
बहलाव, अम्ब डाल कोयलियां कूज गूज मधुराराव, जाई जुही री खुशबू ही, अलि निकुरम्ब विहारे सारे गोगुन्दा री
सीम मैं हो सीम मैं ।। पथरां मैं जड़ रोप खड़या है निम्ब जम्ब
सहकार, ढेर-ढेर धव खदिर पलांस वैर डेर भरमार,
सेव
२०
तुलसी प्रज्ञा-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org