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________________ अ-मरणूसउ मण्णे वि ॥ इ कन्दन्ती । यि तिव अहमहं कवर लक्खण- राम-वे विजइ हुन्ती ॥ हा हा दसरह मारण गुणोवहि । हा हा जरणय जणय अवलोयहि || हा अपराइएं हा हा केक्कइ । हा सुप्पेहें सुमन सुन्दर -मइ || हा सण भरह भरहेसर | हा भामष्कुल भाइ सहो यर ।। हा हा पुणु विराम हा लक्खण । को सुमरमि कहो कहमि अ-लक्खण || को संथवइ मइ को सुहि कहों दुक्क्खु महन्तउ । जहि जहि जामि हउंत तं जि प सु पलित्तउ ॥ यही स्थिति 'मानस' में भी है - हा जग एक वीर रघुराया । केहि अपराध विसारेहु दाया || आरति हरन सरन सुखदायक । हा रघुकुल सरोज दिन नायक ॥। हा लक्षिमन तुम्हार नहि दोसा । सो फलु पायउ कीन्हेंउ रोसा || विपति मोरिको प्रभुहि सुनावा । पुरोडास चह रासभ खावा ।। सीता के विलाप सुनि भारी । भये चराचर जीव दुखारी ।। अहिंसा मूलक जैन धर्म के अनुयायी होने के कारण स्वयंभू कहीं भी आखेट का वर्णन नहीं करते परन्तु युद्धवर्णन में उनका उत्साह अमित है और उन्होंने प्रचुर युद्ध-वर्णन प्रस्तुत किये हैं । उनमें वस्तु वर्णन तथा गणना की प्रवृत्ति का आधिक्य है । वे वृक्षों के नामों की लम्बी सूची प्रस्तुत करते हैं। उनकी प्रवृत्ति मन्दोदरी तथा सीता के नख-शिख तुलसी प्रज्ञा- ३ Jain Education International वर्णन में बड़ी रमी है । यह स्थिति तुलसी की नहीं है। दोनों कवियों में धार्मिक भावना की प्रधानता है । स्वयंभू ने जैन धर्म के आचारात्मक तथा विचारात्मक - दोनों पक्षों का निरूपण किया है। स्वयंभू के रामचन्द्र प्रभु जिन की स्तुति करते हैं जय तुहुं गइतहुं मइ तुहुं पर । तुहुं माया-वधु तुहुं बन्धु-जर ॥ तुहुं परम-पक्खु परमत्ति हरु | तुहुं सब्बहु परहुं पराहियरु ।। तुहुं दंसणे जाणे चरिते थिउ । तुहुं सयल सुरासुरेहिं णमिउ ॥ सिद्धन्ते मन्ते तुहुं वायरणें । सज्झाएं सारणे तुहुं तव चरणें ।। हन्तु बुद्ध तुहुं हरि हरु वितृहुं अण्णाणतमोह- रिउ | तहुं सुहुम निरंज परमगु तुहुं रवि वम्भु सयम्भू सिउ | स्वयंभू का दृष्टिकोण उदार तथा सहिष्णु था। उन्होंने कहीं भी ब्राह्मण धर्म की निन्दा नहीं की। उन्होंने हिन्दू देवताओं, अवतारों तथा भगवान् बुद्ध का नाम सम्मान के साथ लिया है। उन्होंने अपने धर्म का प्रचार अवश्य किया है परन्तु परनिन्दा में वे नहीं पड़े । नारी सूत्र : स्वयंभू के समस्त पात्र जैन धर्मावलम्बी हैं। उनके समस्त नारी पात्र 'जिन भक्त' हैं । तुलसी ने अपने नारीपात्रों में जिस उदातना के अंश को समाविष्ट किया था, उसका अभाव स्वयंभू में दिखायी पड़ता है। स्वयंभू सुप्रभा, उपरम्भा, अंजना, कल्याण, माला आदि अनेक नारी पात्रों की नूतन सृष्टि की है। For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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