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________________ अर्थ - निमित्तान्तर का समुच्चय करने के लिए । अविपाकजा इन दो भेदों का सद्भाव होने से निर्जरा की द्विविधता बताई गई है, ऐसा समझना चाहिये । सूत्र ' में 'च' शब्द दिया है और वह निमित्तान्तर तप जानना चाहिये । तप के द्वारा निर्जरा होती है, यह आगे कहेंगे । सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- तत इत्यनुभवाद्धेतोरित्यर्थः । च शब्दस्तपसा निर्जरा चेति वक्ष्यमाणनिमित्तान्तरसमुच्चयार्थः । स्वोपात्तकर्मनिर्जरणं निर्जरादेशतः कर्मसंक्षय इत्यर्थः । ततोऽनुभवात्तपसा च निर्जराया जायमानत्वाद्विपाक - जाऽविपाकजत्वसद्भावाद् द्वैविद्ध्यमुपदर्शितं बोद्धव्यम् । अर्थ- सूत्र में 'ततः ' शब्द अनुभव का सूचक है अर्थात् अनुभव से। 'च' शब्द 'तपसा निर्जरा च' ऐसे आगे कहे जानेवाले सूत्रोक्त निमित्त का समुच्चय करने के लिए है। अपने द्वारा प्राप्त किये गये जो कर्म हैं, उनकी निर्जरा होना अर्थात् एक देश से कर्म का क्षय होना निर्जरा कहलाती है। इस तरह निर्जरा के अनुभव और तप से होने के कारण यहाँ उसके विपाकजा और 22 दिसम्बर 2009 जिनभाषित तत्त्वार्थवृत्ति - चकारात् 'तपसा निर्जरा च' ( तत्त्वार्थसूत्र ९ / ३ ) इति वक्ष्यमाणसूत्रार्थी गृह्यते । अयमत्र भावः- निर्जरा स्वतः परतश्च भवतीति सूत्रार्थों वेदितव्यः । Jain Education International अर्थ- सूत्र में आये चकार से 'तपसा निर्जरा च' यह आगे कहे जानेवाला सूत्र ग्रहण करना चाहिये । यहाँ यह भाव है कि- निर्जरा स्वतः भी होती है और परतः भी होती है। यह सूत्र का अर्थ जानना चाहिये । भावार्थ- निर्जरा के दो भेद होते हैं- सविपाक निर्जरा एवं अविपाक निर्जरा। सूत्र में सविपाक निर्जरा की चर्चा है एवं सूत्र में आये 'च' शब्द से अविपाक निर्जरा का ग्रहण किया गया है जो कि तप आदि के द्वारा होती है। योगसार ( अध्यात्मदेशना ) राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी सम्पन्न परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के सान्निध्य में 'योगसार - अध्यात्मदेशना' राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी अ. भा. दि. जैन शास्त्रिपरिषद् के अध्यक्ष डॉ० श्रेयांसकुमार जैन के सयोजकत्व में श्री दिगम्बर जैनमन्दिर, सुभाषगंज, अशोकनगर (म.प्र.) में दिनांक २४ एवं २५ अक्टूबर ०९ को सम्पन्न हुई, जिसमें निम्नलिखित विद्वानों ने सहभागिता की एवं शोधालेखों का वाचन किया- ब्र. प्रद्युम्न जैन अशोकनगर प्रा० नरेन्द्र प्रकाश जैन फिरोजाबाद, प्रा. निहालचन्द्र जैन बीना, डॉ० रतनचन्द्र जैन भोपाल, डॉ० शेखरचन्द जैन, अहमदाबाद, डॉ० शीतलचन्द्र जैन, जयपुर, डॉ० कमलेशकुमार जैन, वाराणसी, डॉ० विजयकुमार जैन, लखनऊ, डॉ० कपूरचन्द जैन, खतौली, डॉ० अशोक कुमार जैन, वाराणसी, डॉ० वृषभप्रसाद जैन, लखनऊ, डॉ० नरेन्द्र कुमार जैन, सनावद, डॉ० कमलेश कुमार जैन, जयपुर डॉ० सुरेन्द्र कुमार जैन, बुरहानपुर, प्रा० महेन्द्रकुमार जैन, मोरेना, पं० पुलक गोयल, सांगानेर, डॉ० सुरेश मारोरा, पं० पंकज जैन वाराणसी, डॉ० श्रीयांश जैन सिंघई जयपुर, श्री रमेशचन्द्र मनया भोपाल, आनंद प्रकाश जैन झाँसी, डॉ० सुशील जैन मैनपुरी, पं० पवन दीवान मुरैना । समागत सभी विद्वानों का दिगम्बर जैन समाज, अशोकनगर की ओर से सम्मान किया गया । परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने इस अवसर पर समाज को सम्बोधित करते हुए कहा कि जो चतुर्णिकाय के देवी- देवों को अरहन्त के समान पूजते हैं, वे मिथ्यादृष्टि हैं। मात्र पंचपरमेष्ठी ही वंदनीय हैं। मिथ्यात्व सत् है इसलिए सत्य है किन्तु सत्यार्थ नहीं है, इसलिए मिथ्यात्व वर्जनीय है संगोष्ठी के मध्य डॉ० श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत एवं डॉ० सुरेन्द्र कुमार जैन, बुरहानपुर ने अपने द्वारा सम्पादित 'पुरुषार्थदेशना अनुशीलन' कृति परम पूज्य आचार्य श्री को भेंट की । श्री अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् द्वारा प्रकाशित 'मूलाचार वसुनन्दि पारिभाषिक कोश' (सम्पादक - डॉ० रमेशचन्द जैन), 'श्रावकाचार संहिता' (डॉ० नरेन्द्र कुमार जैन, सनावद ) 'विद्वद्-विमर्श' आदि कृतियाँ परिषद् की ओर से डॉ० शीतलचन्द जैन, डॉ० जयकुमार जैन, डॉ० नरेन्द्र कुमार जैन, डॉ० सुरेन्द्र कुमार जैन ने पूज्य आचार्य संघ को भेंट की । संगोष्ठी में सैकड़ों श्रद्धालुओं की निरंतर उपस्थिति प्रशंसनीय रही । I रमेशचन्द्र चौधरी अशोकनगर श्री दि० जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर, जयपुर (राज० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524346
Book TitleJinabhashita 2009 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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