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आचार्य विद्यासागर-जीवन अतिशय
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी अतिशय उन्हें कहते हैं, जो असामान्य होते हैं. जन्म का अतिशय और विशिष्ट पुरुष के साथ ही घटित होते हैं। ऐसे अतिशय जब इनका जन्म हुआ, तब जन्म होने के बाद जो असामान्य हैं, वे तीर्थंकरों के ही होते हैं, परन्तु आत्मा | जैसे ही बालक विद्याधर का जन्म होता है, तो इनके के पूर्व जन्म के कर्म के कारण वर्तमान जन्म में भी | सामने सफेद ड्रेस पहने हुए बहुत सारी दिक्कुमारियाँ कुछ अतिशय होते हैं, जो विशिष्ट आत्माओं को प्राप्त | आकर खड़ी हो गईं। आपको मालूम आप कुछ नयाहोते हैं। मैं यहाँ जिन महापुरुष की चर्चा करने जा रहा | नया सुन रहे हैं, इनका जन्म सदलगा में नहीं हुआ, हूँ, वे तीर्थंकर नहीं हैं, न ही उनके पंचकल्याणक हए | सदलगा के पास एक हॉस्पिटल है, चिक्कोड़ी ग्राम में। हैं। उन महापुरुष की संपूर्ण जीवनी को, जब मैं एक | उस चिक्कोड़ी ग्राम में बालक विद्याधर का जन्म हुआ दृष्टि से समूचा देखता हूँ, तो इन पाँच महाअवसरों पर | और जब बालक का जन्म हुआ, तब वहाँ पर बहुत जो कि गर्भ, जन्म तप, ज्ञान और निर्वाण कहलाते हैं. | सारी सफेद पोशाकों में सेविकायें उपस्थित थीं, जिन्हें कुछ विशिष्ट पाता हूँ। उन्हीं विशिष्टताओं को मैं आज | | आज कल इंग्लिश में 'नर्स' बोलते हैं। जैसे ही इनका आपको सुना रहा हूँ। ये विशिष्टतायें हैं, जिन्हें बहुत | जन्म हुआ, तब इनके स्वास्थ्य को देखने के लिए weight कम लोगों ने इस तरह देखा होगा। भक्ति में आप्लावित | (वजन) लिया गया, ऐसा होता है हॉस्पिटल में। उनका भक्त जब भगवान् की स्तुति करते हैं, तो ऐसा भी सोच | weight (वजन) इतना एक्जेक्ट और एक्यूरेट था कि बैठते हैं, जो न कभी घटित हुआ है और न हो सकता | सब नर्से हर्षित होते हुए, माँ के पास आईं और कहने है। आचार्य पूज्यपाद देव ने एक जगह भक्ति करते हुए लगीं- माँ! ऐसा स्वस्थ बालक तो हमने पहले कभी कहा है कि- "त्वं तत् त्यजोपेक्षणम्' अर्थात् हे भगवन्! | देखा ही नहीं, हमने इतनी सारी डिलेवरी कराई हैं। कोई आप अपनी उपेक्षा छोड़ दें। क्या भगवान् कभी उपेक्षा | नर्स कहती- माँ! ये बालक बिलकुल एक्यूरेट वजन चारित्र छोड़ सकते हैं? नहीं। फिर भी भक्त भक्ति में | का है। कोई नर्स कहती है- माँ तुम्हारे बालक के जन्म अपने को भूल जाता है और श्रद्धेय के प्रति अति भक्ति | के बाद भी तुम्हें उतनी पीड़ा नहीं हुई, जितनी पीड़ा में असंभव कल्पनाओं को भी कर लेता है। पर आप एक सामान्य माँ को होती है। एक नर्स आकर कहती लोग निश्चिन्त रहें, हम आपको यथार्थ से अवगत करायेंगे, है- माँ पुत्रजन्म होने के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर कोई पर कुछ अलग तरह से।
म्लानता नहीं आई। एक नर्स दर्पण लेकर के आती है गर्भ का अतिशय
और कहती है- माँ! अपना चेहरा तो देखो, कितना अच्छा वर्तमान में हमने न समवशरण देखे, न तीर्थंकर लग रहा है। ये जन्म के अतिशय हैं और क्या कहें? देखे, लेकिन आचार्य विद्यासागर महाराज को देखकर | दीक्षा के अतिशय लगता है कि ये तीर्थंकर तो नहीं, लेकिन तीर्थंकर से | १९ साल बाद बालक विद्याधर का राजस्थान में हल्का पुण्य लेकर ही आयें हैं, और जब इनका समवशरण | जब दीक्षामहोत्सव मनाया गया, तब सामान्य से उस शहर देखते हैं, तो वास्तव में तीर्थंकर जैसे ही दिखाई देते | में सर्कस लगना था। सर्कस लगानेवाले लोग जगह ढूँढने हैं। प्रत्येक महापुरुष के जीवन में पंचकल्याणक घटित | शहर में घूम रहे थे कि हमें सर्कस लगाने के लिए हों, यह जरूरी नहीं हैं, लेकिन इनके जीवन में जो भी | जगह मिल जाये। उस समय वहाँ के सेठजी थे- सेठ अभी तक जितना जीवन गुजर गया है, वह सब अतिशय | भागचन्द्र जी सोनी। उनके पास वे लोग पहुँचे और बोले के साथ हुआ। गर्भ समय में इनकी माँ ने स्वप्न में | हमें सर्कस लगाने के लिए जगह चाहिए, ठीक उसी देखा कि दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराजों को आहार दे | समय ज्ञानसागर जी महाराज ने घोषित कर दिया कि रहे हैं। समझो क्या यह किसी गर्भ अतिशय से कम | इनकी दीक्षा होना है और इसके लिए जो सामान्य से
| कुछ भी प्रोग्राम होता है, उसे करना है। यह बात सेठ
6 नवम्बर 2009 जिनभाषित
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