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________________ रजि नं. UPHIN/2006/16750 प्रकाशित हो गया है प.पू. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के तत्त्वावधान में प्रो. रतनचन्द्र जैन (भोपाल, म.प्र.) के द्वारा दस वर्षों के अनवरत परिश्रम से लिखित, तीन खण्डों एवं 2600 पृष्ठों में समाया चिरप्रतीक्षित ग्रन्थ : जैनपरम्परा और यापनीयसंघ। जैनपरम्परा और यापनीयसंघ प्रथम खण्ड जैनपरम्परा और यापनीयसंघ प्रो० (डॉ) रतनचन्द्र जैन जैनपरम्परा और यापनीयसंघ द्वितीय खण्ड जैनपरम्परा और यापनीयसंघ दिगम्बर-श्वेताम्बर-यापनीय जैन साहित्य, वैदिक एवं बौद्धसाहित्य, संस्कृत गद्य-पद्य-नाट्य साहित्य तथा शिलालेखों और पुरातत्त्व के गहन अध्ययन से उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर निरसन किया गया है उन मिथ्यावादों का, जो दिगम्बर जैन-परम्परा और आचार्य कुन्दकुन्द की ऐतिहासिकता एवं षट्खण्डागम आदि अठारह दिगम्बरजैन ग्रन्थों की कर्तृपरम्परा के विषय में प्रचलित किये गये हैं, अनेक श्वेताम्बर जैन मुनियों एवं विद्वानों तथा कतिपय दिगम्बर जैन विद्वान्-विदुषियों के द्वारा। इसमें है दिगम्बरजैन-परम्परा की प्रागैतिहासिकता, आचार्य कुन्दकुन्द की ईसापूर्व प्रथम शती में अवस्थिति एवं षट्खण्डागम आदि जिन 18 दिगम्बर जैन ग्रन्थों को यापनीयग्रन्थ बतलाया गया है, उनके दिगम्बराचार्यकृत होने के अखण्ड्य प्रमाणों का प्रस्तुतीकरण। अनेक आक्षेपों का निरसन, अनेक नवीन तथ्यों का उद्घाटन। मिथ्यावादजन्य भ्रान्तियों में फँसने से बचने-बचाने तथा अपनी धर्मपरम्परा के इतिहास एवं साहित्यिक विरासत की प्रामाणिकता से अवगत होने हेतु प्रत्येक श्रावक-श्राविका एवं मुनि-आर्यिका के लिए अवश्य पठनीय। शोधार्थियों के लिये तथा जैन संघों के प्रामाणिक इतिहास एवं सिद्धान्तों के जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उपादेय। प्रत्येक जैनमन्दिर, जैन-शिक्षण संस्थान, महाविद्यालयों और देश-विदेश के विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों में संग्रहणीय। प्रकाशक एवं प्राप्तिस्थान : सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 फोन : 0562-2852278, मो.9412264445 मूल्य : प्रत्येक खण्ड 500 रु., पूरा सेट (तीनों खण्ड) 750 रु. (31 जनवरी 2010 तक) प्रो० (डॉ०) रतनचन्द्र जैन जैनपरम्परा और यापनीयसंघ तृतीय खण्ड जैनपरम्परा और यापनीयसंघ प्रो० (डॉ०) रतनचन्द्र जैन स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524345
Book TitleJinabhashita 2009 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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