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________________ २७. भाग २ पृ. २२० पर भरतेश्वर की काली । है। ऐसा प्रतीत होता है कि रत्नाकर वर्णी के गुरु, हंसनाथ मूंछों का वर्णन है, जब कि आगम के अनुसार ६३ शलाका | नाम के जैनेतर कवि होंगे। पुरूषों के दाढ़ी-मूंछ नहीं होते हैं। ३२. भाग २ पृ. २३७ पर लिखा है- "ज्ञानावरणी २८. भाग २ पृ. २२० पर भरतेश्वर को महान | की ४ प्रकृतियों का अंत पहले से हो चुका है, अब कामी और भोगी बताया है। लिखा है- 'जिन स्त्रियों बचे हुए धूर्तकर्मों को भी मार गिराऊँगा। तदुपरान्त ध्यानपर जरा भी बुढ़ापे का असर हुआ, उनको मंदिर में | खड्ग के बल से प्रचला व निद्रा का नाश किया, साथ ले जाकर आर्यिकाओं से व्रत दिलाते थे और उनके पास | में अन्तराय व दर्शनावरण की शेष प्रकृतियों को नष्ट ही छोड़कर नवीन जवान स्त्रियों से विवाह कर लेते | किया। यह प्रकरण बिल्कुल आगमविरुद्ध है। थे। ऐसे भोगी राजा को रत्नाकर कवि ने भाग १ पृ. ३३. निगोद से निकलकर, मनुष्यपर्याय धारणकर, १६९ पर शुद्धोपयोगी कैसे कह दिया, बड़े आश्चर्य की | मोक्ष प्राप्त करनेवाले महाराजा भरत के ९२३ पुत्रों की बात है। इसमें कोई चर्चा नहीं है। . २९. भाग २ पृ. २२१ पर लिखा है कि भरतेश्वर | उपर्युक्त प्रसंगों के आधार से यह निष्कर्ष निकलता की रोज नई-नई शादियाँ होती रहती थीं। लिखा है 'देश- | है कि इस ग्रन्थ के रचयिता प्रामाणिक नहीं हैं, उन्होंने देश से प्रतिदिन कन्याएँ आती रहती हैं। रोज भरतेश्वर | राजा आदि को प्रसन्न करने के लिए अपने मन के का विवाह चल रहा है। इस प्रकार वे नित्य दूल्हा ही | अनुसार कल्पित कथा गढ़कर लोक में सम्मान प्राप्त करने बने रहते हैं। के लिए इस ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ की ३०. भाग २ पृ. २२० पर लिखा है कि भरतेश्वर | रचना १६वीं शताब्दी में हुई। उनके सामने भरतेश्वर के अर्ककीर्ति कुमार को बुलाकर बोले- "इधर आओ, इस | चरित्र का निरूपण करनेवाले आचार्यप्रणीत शास्त्र उपलब्ध राज्य को तुम ले लो, मुझे दीक्षा के लिए भेजो।" अर्ककीर्ति थे परन्तु उन्होंने उनका आधार न लेकर, लोक को के आनाकानी करने पर उन्होंने कहा- मैं घर में रह | रंजायमान करनेवाला यह अप्रामाणिक ग्रन्थ रच डाला। तो सकता हूँ, परन्तु आयुष्यकर्म तो बिल्कुल समीप आ | उनकी जैनधर्म में कोई आस्था नहीं थी और न उनको पहुँचा है। आज ही घातिया कर्मों को नाश करूँगा और | सैद्धान्तिक ज्ञान ही था। उनका जीवन कामवासना से पूरित कल सूर्योदय होते ही मुक्ति प्राप्त करने का योग है। रहा। भरतेश्वर को क्षायिक सम्यक्त्व था, अतः उनके भरतेश्वर ने पहले दिन दीक्षा ली, शाम को केवलज्ञान सांसारिक भोगों में आसक्ति का अभाव था, परन्तु रत्नाकर हुआ और अगले दिन मोक्ष प्राप्त किया। यह प्रकरण | कवि ने अपनी प्रवृत्ति एवं वासना के अनुसार भरतेश्वर बिल्कुल गलत है। आदिपुराण पर्व ४७ के अनुसार | को महान् भोगी प्रदर्शित किया है। वास्तविकता यह है केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान भरत ने समस्त | कि यह ग्रन्थ कथावस्तु तथा सिद्धान्त की अपेक्षा एकदम देशों में चिरकाल तक विहार किया। (श्लोक ३९७- | अप्रामाणिक है। ३९९)। ८१/९४, नीलगिरि मार्ग मानसरोवर, ___३१. इस ग्रन्थ में गुरु हंसनाथ की बहुत चर्चा | जयपुर-३०२०२० (राजस्थान) आत्मकल्याणेच्छुक आत्मार्थी सम्पर्क करें अनेकान्त-ज्ञान मंदिर शोध-संस्थान बीना के अन्तर्गत निर्माणरत श्रुतधाम परिसर में अनेकान्त प्रज्ञाश्रम भवन बनकर तैयार है। अनेकान्त प्रज्ञाश्रम-समाधि साधना केन्द्र में साधना करने हेतु, श्री दिगम्बर जैनसमाज के वानप्रस्थी व्यक्ति जो अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए हैं, सेवा निवृत्त हो चुके हैं, शेष जीवन धार्मिक वातावरण में व्यतीत करना चाहते हैं। उनके आवास, स्वाध्याय-ज्ञानार्जन, शुद्धभोजन एवं संयमी जनों का सान्निध्य सुलभ रहेगा। केन्द्र पर आने के इच्छुक दम्पत्ति एवं एकल व्यक्ति निम्न पते पर आवेदन भेजें। आगत आवेदनों पर विचार करके आपको चयन समिति प्रवेश दे सकेगी। ब्र. संदीप सरल, अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना, (सागर) म.प्र. ०७५८०-२२२२७९ 20 नवम्बर 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524345
Book TitleJinabhashita 2009 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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